मक़बूल

maqbul

अरमान आनंद

अरमान आनंद

मक़बूल

अरमान आनंद

फ़िल्म के पोस्टर बनाता था

एक लड़का

मुंबई की सड़कों पर

सीढ़ियाँ लगाकर लेई से पोस्टर के चौकोर हिस्से

आपस में चिपकाया करता था

जैसे आकाश पर चाँद सितारे चिपका रहा हो

और फिर सबसे आँखें बचाकर

नीले कोरे समंदर पर बादल से उड़ते

घोड़ों की हिनहिनाहट लेप देता

गर्द उड़ाते हवा से बातें करते

शानदार अरबी घोड़े

और उनकी पीठ पर हिंदुस्तानी कहानियाँ चिपकी होतीं

कैनवास पर उभरते बदन के पेचोख़म को

उसके हाथ यूँ तराशते जैसे

ग़ुलाम अली की कोई ग़ज़ल चल रही हो

रूई की तरह सफ़ेद झक्क

अमिताभ कट वाले बाल

गोल चश्मा

कुरतेबाज़ बदन

कूचियों में उलझी लंबी उँगलियाँ

और ख़ाली खुले पैर

जाने क्या ज़िद थी

उसकी अम्मी बचपन में गुज़र गई थीं

वह जब भी आकाश से उतरता

भागती गोल धरती को कैनवास-सा बिछा देता

और देर तक

गोल-गोल रेखाएँ खींचता

और इन सबसे ऊब जाता

तो भीमसेन की आवाज़ पर रंगों का डब्बा उड़ेल देता

कहते हैं एक दिन किसी ने उसकी कूचियाँ चुरा लीं

और रंगों का वह रूठा बादशाह

अपने ही अरबी घोड़े पर बैठकर कहीं दूर चला गया

भला कोई किसी से उसकी माँ दो बार कैसे छीन सकता है

लेकिन उसके साथ ऐसा ही हुआ

अब वह भी दूर तक बिछे रेत में

गोल-गोल आकृतियाँ बनाता है

उन गोलाइयों के बीच मादरे-हिंद की याद में

बिलखता प्यासे रेगिस्तान के होंठ

अपने आँसुओं से तर करता है

मक़बूल फ़िदा हुसैन

वह शख़्स जिसने हिंदुस्तान का नाम

पूरी दुनिया में मक़बूल किया

हिंदुस्तानी उसे सिवा नफ़रतों के कुछ नहीं दे पाए

स्रोत :
  • रचनाकार : अरमान आनंद
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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