Font by Mehr Nastaliq Web

मेरी बस्ती के बच्चे

meri basti ke bachche

निदा नवाज़

अन्य

अन्य

निदा नवाज़

मेरी बस्ती के बच्चे

निदा नवाज़

और अधिकनिदा नवाज़

    *

    पहले मेरी बस्ती के बच्चे

    खेलते थे कूचों में गिल्ली डँडा

    अब वे पत्थरों से खेलते हैं

    उनके लिए पत्थरबाज़ी

    खेल मात्र है

    या फिर अपने गुस्से के इज़हार का

    एक जोख़िम भरा तमाशा

    भले ही बड़ों ने लगाया हो

    एक-एक पत्थर पर

    ढेर सारा पैसा

    बच्चे कहाँ जानते हैं

    दूसरों के सिरों पर

    दाँव लगाने की राजनीति।

    *

    पूरी बस्ती के लोगों के

    एक ही जगह जमा होने को

    समझते हैं वे केवल एक त्योहार

    ईद या दीपावली का कोई पर्व

    और खेलते-खेलते फलाँगते हैं

    मुहासिरे की क्रूर सीमाएँ

    फिर सुनाई देती हैं उन्हें

    गोलियों की ख़ौफ़नाक आवाज़ें

    और अपनी नन्हीं आख़िरी हिचकियाँ

    मुहासिरे में ऐसे ही दम तोड़ते हैं

    मेरी बस्ती के नन्हे बच्चे।

    *

    रात का गहराता अँधेरा

    उल्लू के डरावने बोल

    चेहरों पर नक़ाब चढ़ाए

    चंद आतंकी परछाइयाँ

    पक्षियों का एक प्रसन्न परिवार

    और फिर गोलियों की वर्षा

    तीन बच्चों के सामने पड़े

    ख़ून में डूबे दो बड़ों के शव

    मेरी बस्ती के बच्चों की

    नन्ही और कोमल आँखें

    देखती हैं दिन रात

    ऐसे ही कठोर दृश्य।

    *

    कर्फ़्यू में अपनी पतंग

    कहाँ उड़ा पाते हैं

    मेरी बस्ती के बच्चे

    और ही खेल पाते हैं

    कहीं कोई लंगड़ी खेल

    कर्फ़्यू में पहरे लग जाते हैं

    उनके गली कूचों तक पर भी

    दिन भर वे सुनते रहते हैं

    अपनी उखड़ी साँसों के सहमे सुर

    और पढ़ते रहते हैं

    बड़ों के चेहरों पर लिखी

    डर की अंतहीन इबारतें।

    *

    कुन्न-पोशपोरा के दो जुड़वा गाँव

    23 फ़रवरी 1991 की काली नागिन रात

    मुहासिरे का भयावह दृश्य

    कोतवाल की आँखों में उतर आई एक साथ

    वासना, घृणा और सांप्रदायिकता

    दर्ज़नों नाज़ुक मादाओं की फड़फड़ाहट

    सहमी सिसकियों का रुदन

    रक्तिम स्याह मंज़र और रम की गंध

    बूढ़ी औरतों का करहाना

    नन्हीं चीख़ें और सहमा अँधेरा

    भारी बूटों की आवाज़ों तले दबी

    दूध पीते बच्चों की किलकारियाँ

    दो जुड़वाँ गाँव की प्रतिष्ठा

    मान मर्यादा का विशाल क़ब्रिस्तान

    और फिर

    निरंतर विलापित सन्नाटा।

    *

    बस्ती के अंतिम छोर पर

    तितलियों को पकड़ने की होड़ में

    बच्चे दौड़ पड़ते हैं मन मर्ज़ी

    अचानक खेलने लगते हैं

    उस पार से दागे गए

    किसी पुराने मोर्टारशैल से

    एक ज़ोरदार धमाका हो जाता है

    सीमाओं की फ़ज़ाओं में उड़ते

    चील और कौए मुस्कुराने लगते हैं

    और मेरी बस्ती के बच्चे

    तितलियों के साथ उड़कर

    बहुत दूर चले जाते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : निदा नवाज़
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY