Font by Mehr Nastaliq Web

मेरे गाँव के घरों की छतों पर मुँडेर नहीं है

mere gaanv ke gharon ki chhaton par munDer nahin hai

हिमांक

अन्य

अन्य

हिमांक

मेरे गाँव के घरों की छतों पर मुँडेर नहीं है

हिमांक

और अधिकहिमांक

    मेरे गाँव के घरों की छतों पर मुँडेर नहीं है

    वहाँ की छतें ढलाव के साथ

    समतल काले पत्थरों से बनी हैं

    इसलिए जब बारिश होती है

    तो वो बरसात का पानी भी नहीं रोक पाती!

    वो छत, शहर के छतों के विपरीत है

    वो टैंकर के सहारे पानी नहीं देती

    बल्कि मेरे गाँव के घरों की छत

    हर बारिश पर टपकती है

    वो बूँदे, जिनको समेटने के लिए

    मेरी दादी एक गोलनुमा पतीला रखती है

    ठीक उस टपकने वाली छत के नीचे

    पर कभी-कभी वो छत बिन बताए

    कहीं से भी टपक जाती है

    कभी उस सिलबट्टे के ऊपर

    जिस पर दादी नमक (लूण) पिसती है!

    तो कभी हमारे चूल्हे के ऊपर

    जिस पर दादी रोटी सेंकती हैं

    तो कभी उस छज़्जे पर

    जहाँ माँ, गेहूँ सुखाने डालती है

    उस छत से टपकता पानी

    ओंस की बूँदों की तरह लगता हैं

    जो हमारी डेहरी से होकर

    गूल के सहारे

    खेतों में समा जाता है

    फसलों को अंदरूनी नमी देने के लिए!

    वो छतें बस टपकती रहती है

    एक संगीत के संग

    वो टप-टप की आवाज़ें

    कानों में गूँजती है

    एक निरंतरता के संग

    मानों कहीं दूर पहाड़ी के बीच

    कोई ढोल बज रहा हो!

    स्रोत :
    • रचनाकार : हिमांक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY