मेरा विलोम

mera vilom

शंभु यादव

शंभु यादव

मेरा विलोम

शंभु यादव

अपने पैरों में नाइकी के जूते पहन

एल.जी. के शोरूम में विभिन्न आइटमों की वैरायटियों पर

ललचाई छलाँग लगाता वह

मुग़लई रेस्तराँ में बैठा है

उसे मसालेदार मटन खाने का चस्का

वह दारू के आठ पैग पी जाने के बाद भी आउट नहीं होता

ऐसिडिटी और वमन की तो मजाल ही क्या

जो उसके पास भी फटक जाए

उसके पास नामलेवा कोई कारोबार नहीं

फिर भी उसकी जेब रुपयों से लबालब

उसे अधिकतर पसंद है वे लोग, जो

ठेकेदार हैं, सट्टेबाज़ हैं, बिल्डर हैं

माफ़ियाओं से भी यारी गाँठना चाहता है

इन्हीं में से उभरे किसी नेता का साथ

उसे नफ़रत है इलाक़े में पटरी लगाने वालों से

बीच सड़क रिक्शा चलाने वालों से

उसका बस चले तो भिखमंगों के हाथ काट दे

उसे साहित्य पढ़ना या किसी को साहित्य पढ़ते देखना

दोनों से खीझ है

और अगर आप उसका सीना फाड़कर भी

ग्लानि भरा कुछ रसायन या

अदना सी एक कोशिका ही देखना चाहें भलाई की

और वह मिल जाए, तो जनाब!

उसका सीना फाड़ने के इल्ज़ाम में, आपकी जगह

मैं फाँसी चढ़ने को तैयार हूँ।

स्रोत :
  • रचनाकार : शंभु यादव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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