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मेरा कवि

mera kawi

अनिल कुमार सिंह

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और अधिकअनिल कुमार सिंह

    धूप, हवा और पानी से दूर

    खिड़कीविहीन दफ़्न हूँ मैं

    अपनी इस कोठरी में

    मकड़ियों ने जाले बुन दिए हैं

    मेरी पलकों पर

    समय के खुरदुरे हाथों से दूर

    फिर भी नज़दीक ही कहीं

    जम रहा हूँ मैं अपने माथे

    कंधों और गर्दन से झाड़ता हुआ

    भुरभुरी मिट्टी की परतें

    बंद आँखों में उभरता है

    अँधेरे का गुंबद धीरे-धीरे

    हवा है अवसन्न

    दीवारों से टकराकर लौटती हुई

    बासी गंध

    चूहों, झींगुरों और मच्छरों की

    भिनभिनाहट के बीच सड़े

    पसीने की तीखी दुर्गंध

    यह कबीर की दुनिया

    नहीं है और ही ख़ाला का घर

    यह मेरी अपनी दुनिया है जिससे

    बाहर है मेरा कवि

    धूप, हवा और पानी से दूर

    खिड़कीविहीन दफ़्न हूँ मैं

    अपनी इस कोठरी में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पहला उपदेश (पृष्ठ 61)
    • रचनाकार : अनिल कुमार सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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