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मरे हुए लोग

mare hue log

ऋतुराज

अन्य

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ऋतुराज

मरे हुए लोग

ऋतुराज

और अधिकऋतुराज

    मरे हुए लोग

    अभी तक यहाँ से गए नहीं हैं

    जीवित लोग उन्हें उठाए फिर रहे हैं

    कहना बहुत आसान है

    कि वे ख़ुद मरे थे

    कि उन्हें मारा गया था

    कहना बहुत आसान है

    कि महज़ सत्ता हासिल करने के लिए

    उनका इस्तेमाल किया गया था

    फिर उन्हें मारा गया था

    ताकि वे भीतर घुस पाएँ

    कभी कोई बूढ़ा आता है

    तो तनिक वे उठकर बैठने लगते हैं

    युवाओं की भीड़ देखकर

    कुछ क़दम चलने का नाटक करते हैं

    कभी गालियों से गढ़ी भाषा

    पढ़कर चीख़ने लगते हैं

    क्या होगा ऐसे शब्दों का

    अब नहीं तो तब

    उन्हें फाँसी होगी?

    झूठ के विराट उजाले में

    कौन बचेगा उन्हें पढ़ने?

    जो लोग मरे हैं

    और जिए हैं पूरे कभी

    व्यर्थताओं का अलाव सुलगाए

    इसी तरह अपने भीतर पड़े

    मरे हुओं को याद करते रहेंगे

    स्रोत :
    • पुस्तक : फेरे (पृष्ठ 90)
    • रचनाकार : ऋतुराज
    • प्रकाशन : साहित्य भंडार
    • संस्करण : 2014

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