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मनु के मन की कुंठित स्मृति

manu ke man kii kunthit smriti

बच्चा लाल 'उन्मेष'

अन्य

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बच्चा लाल 'उन्मेष'

मनु के मन की कुंठित स्मृति

बच्चा लाल 'उन्मेष'

और अधिकबच्चा लाल 'उन्मेष'

    तब नारी, सरे बाज़ार बिकी थी

    जब मनु ने मन की स्मृति लिखी थी

    कब होती स्याही ख़त्म मनु की?

    शूद्रों के लहू से दवात भरी थी।

    निकृष्ट सोच और मन विषाक्त

    देता मनुजों को, बाँट के घात

    तब पशुओं की ही जाति भली थी

    जब मनु ने मन की स्मृति लिखी थी।

    बोए हम, पर काटे वो

    हम शहद जुटाएँ, पर चाटे वो

    बन बाग़ का मालिक, बैठ छाँव में

    माली के हक़ में धूप लिखी थी

    जब मनु ने मन की स्मृति लिखी थी।

    चाक़ू के आगे ख़रबूज़ा क्या?

    एकलव्य का एक अँगूठा क्या?

    कटे पड़े थे हर एक अंग

    तक पगड़ी भी पैरों पर पड़ी थी

    जब मनु ने मन की स्मृति लिखी थी।

    मनु की इस अद्भुत सनक से

    रचे गए जुमले नरक से

    कि चहारदीवारी में औरत

    बस घूँघट डाले बिस्तर पर पड़ी थी

    जब मनु ने मन की स्मृति लिखी थी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : बच्चा लाल 'उन्मेष'
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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