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जय माँ मणिपुर

jay man manaipur

अनुवाद : इबोहल सिंह काड़्जम

अशांगबम मीनकेतन सिंह

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जय माँ मणिपुर

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    जय माँ मणिपुर, जय माँ, तेरी जय!

    पहचान नहीं पाया माँ तेरा प्यारा स्वरूप—

    बुरा मान प्यारी माँ मणिपुर,

    तेरा श्रेष्ठ नाम जपूँगा माँ मणिपुर,

    आराधना करूँगा हृदय में तेरे प्यारे स्वरूप की!

    धारण की थी माँ, तेरे विषय में ग़लत धारणा, की थी माँ,

    फूलों की सुंदर बगिया है मालिन द्वारा सजाई हुई,

    अपना देश है मेरे लिए प्यारा देश—

    धारणा की थी तेरे विषय में ग़लत एक स्थान भर माँ!

    हाड़-माँस के शरीर का एक प्यारा नाम रख

    “मेरा प्यारा लाल” माँ तेरी छाया में,

    हर जगह तेरे संरक्षण में तेरी दया का पात्र बनते समय

    पहचान नहीं पाया, कि अवतारी है—तेरी दया का स्वरूप!

    पानी भरी यमुना के घाट की वक्र गति में

    जैसे माला टूटकर बिखर जाती है वैसे ही माँ

    तेरे अदृश्य होते समय,

    जैसे फूल बिखर जाता है वैसे ही माँ तेरे खो जाते समय

    सब समाप्त हो गया इस बार सोच रोया था हृदय में!

    वापस नहीं जाऊँगा कभी मणिपुर की धरती पर,

    बहुत प्यारी है किंतु क्या करूँ वह माँ तो नहीं रही—

    मातृ-वियोग के ताप से सोचा था हृदय में अपने,

    बुरा मान माँ, उपेक्षा की थी अनजाने में!

    पहचान लिया माँ आज तो तेरा प्यारा स्वरूप—

    युग-युग में सैकड़ों बार माँ का अवतार धारण,

    कङलै* के घर-घर में अपने पुत्र-पुत्रियों को दूध पिलाने वाली

    पहचान लिया, माँ तू है—पहचान लिया तेरा प्यारा स्वरूप

    तेरे प्यारे स्वरूप की आराधना करूँगा माँ हृदय में,

    गाऊँगा माँ तेरी दया का गुणगान ऊँची आवाज़ में

    तेरा प्यारा नाम जपूँगा माँ कविता रचकर—

    संभ्रम में नहीं पडूँगा मैं कभी माँ कभी!

    जय माँ मणिपुर, जय माँ, तेरी जय!

    दे दिए मेरे शरीर को अपने कण,

    प्रवाहित की मेरे लहू में अपने लहू की बूँदें—

    जय माँ मणिपुर, जय माँ, तेरी जय!

    डाल दी मेरे प्राणों में अपनी प्राण-वायु

    बढ़ी शक्ति तेरी फसलों से—

    जय माँ मणिपुर, जय माँ, तेरी जय!

    युग-युग में सैकड़ों बार माँ का अवतार धारण करने वाली,

    कङलै के घर-घर में अपने पुत्र-पुत्रियों को दूध पिलाने वाली,

    जय माँ मणिपुर, जय माँ, तेरी जय!

    *कङलै : मणिपुर का प्राचीन नाम

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक मणिपुरी कविताएँ (पृष्ठ 15)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : अशांगबम मीनकेतन सिंह
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1989

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