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माँएँ डरने के लिए जीती हैं

manen Darne ke liye jiti hain

निखिल आनंद गिरि

निखिल आनंद गिरि

माँएँ डरने के लिए जीती हैं

निखिल आनंद गिरि

हमारा बचपन ऐसा नहीं कि

गाया जा सके उदास रातों में

हमारे नसीब में नहीं थे सितारे

जिन्हें तोड़कर टाँक सकें स्याह रातों में

उम्र बढ़नी थी, कोई रास्ता नहीं था

वरना उस एक मोड़ पर रोक लेते ख़ुद को

कि जहाँ से ज़िंदगी सबसे उबाऊ

और मजबूर रास्ते लेती है

पूछो अपनी माँओं से

पूछो पिताओं से

कि जब कोई रास्ता नहीं रहा होगा

तो मजबूरी में करनी पड़ी होगी शादी…

और फिर शाकाहारी पत्नियाँ माँजती रही होंगी बर्तन

और परोसती रही होंगी माँस अपने पतियों को

और फिर बेटे हुए होंगे

बँटी होंगी मिलावटी मिठाइयाँ

और बेटियाँ होने पर सास ने बकी होगी गालियाँ

पत्नियाँ ख़ून का घूँट पीकर रह जाती होंगी

और पति चश्मा इधर-उधर करते हुए…

पतिव्रता पत्नियाँ फ़रेब के क़िस्सों से ज़्यादा कुछ भी नहीं

बड़े होते बेटों से रहती होगी उम्मीद

कि उनकी एक हुँकार से सिहर उठेगी दुनिया

जबकि असल में वे इतना डरपोक थे कि

कूकर की सीटी से भी लगता रहा डर

कहीं फट पड़े टाइम बम की तरह

दीवार पर छिपकली आने भर से

मूत देते थे सुकुमार

और समझिए ऐसे दोग़ले समय में

गूँथी हुई चोटियाँ हथेली में लेकर

कैसे किया होगा हमने प्यार…

और समझो कितनी सारी हिम्मत जुटानी पड़ी होगी

यह कहने के लिए, बिन पिए

कि तुम्हारी नंगी पीठ पर एक बार फिराकर उँगलियाँ

लिखना चाहता हूँ अपना नाम

हालाँकि एक मर्द है मेरे भीतर

जो कर सकता है हर किसी से नफ़रत

ग़ुस्से में माँ को भी माफ़ नहीं करता

हालाँकि यह भी सच है कि

माँएँ डरने के लिए ही जीती हैं

पहले मजबूर पिताओं से

फिर मर्द होते बेटों से।

स्रोत :
  • रचनाकार : निखिल आनंद गिरि
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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