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हवा, आग और क्रांति

hava, aag aur kranti

अनुवाद : केदार कानन

सुस्मिता पाठक

अन्य

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सुस्मिता पाठक

हवा, आग और क्रांति

सुस्मिता पाठक

और अधिकसुस्मिता पाठक

    साँय-साँय बहती है

    चेतना की हवा

    हर जगह बहती है

    नए युग की कथा कहती है

    चेतना की हवा।

    लपट-लपट उठती है

    क्रांति की आग

    हर जगह धधकती है

    नए युग की कथा कहती है

    क्रांति की आग।

    हर जगह तैयार हैं

    क्रांतिधर्मी लोग

    अपनी-अपनी चेतना से लैस

    हर मोर्चे पर

    अपने उत्स की कथा कहते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिली कविताएँ (पृष्ठ 64)
    • संपादक : ज्ञानरंजन, कमलाप्रसाद
    • रचनाकार : सुस्मिता पाठक
    • प्रकाशन : पहल प्रकाशन

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