मैं उपन्यास चाहता हूँ

main upanyas chahta hoon

जयंत शुक्ला

जयंत शुक्ला

मैं उपन्यास चाहता हूँ

जयंत शुक्ला

और अधिकजयंत शुक्ला

    कोशिश करता हूँ

    कि कविताओं के पास रहूँ

    ...नहीं रह सकता।

    पर लौट ही जाता हूँ

    यदा-कदा

    उनके पास,

    उनके साथ रहना

    सुखद है।

    उपन्यास के पास जाना

    सुखद से थोड़ा ज़्यादा।

    कविताएँ मुझे पूरा नहीं कर पा रही हैं,

    मुझे उपन्यास चाहिए

    —बहुत बड़े उपन्यास;

    लिखने के लिए ढेर सारे पन्ने चाहिए।

    किसी कविता में तुम्हारा वृहत् बिंब नहीं समा रहा

    कविताएँ टूट जाती हैं

    अपने ही संग्रह में

    और संवाद अगर बेहतर हो भी जाएँ तो

    काव्य-नाटिकाओं में तुम्हारा आंगिक अभिनय नहीं सधता।

    मैं मंच पर तुम्हें सजा नहीं सकता

    (ऐसा नहीं कि मैं चाहता नहीं

    पर यह असंभव-सा है)

    सबके मन में तुम्हारा अलग-अलग बिंब हो

    तो बेहतर है।

    बहते चले जाना

    और कविता का हो जाना, आसान है।

    तुम्हें थोड़ा थोड़ा लिखकर

    मैं महीनों (वर्षों?) की मेहनत से उपजा उपन्यास चाहता हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जयंत शुक्ला
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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