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मैं अकेला हूँ

main akela hoon

कर्मदेव पाठक

अन्य

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कर्मदेव पाठक

मैं अकेला हूँ

कर्मदेव पाठक

और अधिककर्मदेव पाठक

    मैं अकेला हूँ

    इतना अकेला

    कि घड़ी की सूइयों के चलने की आवाज़

    मुझे डग्गे की सी जान पड़ती है

    टिक–टिक-टिक।

    और हृदय की की धक-धक

    तबले की थाप-सी

    जिनपे मेरी रूह नाच रही है

    तुम्हारा रूप लेकर

    मेरे मन की पायल पहने

    छन-छन-छन।

    झरोखों से पतली-सी

    धारदार तलवार, रोशनी की, उजली-सी

    मेरी पलकों पे वार कर रही है

    और बह रहा है लहू

    तुम्हारे रूप में नाचती

    मेरी रूह के क़दमों से।

    आरोह-अवरोह करतीं मेरी साँसें,

    किसी वीणा के तारों सी हैं।

    मेरा जिस्म थरथरा उठा है

    मेरी रूह झनझना उठी है

    थिरकते-थिरकते

    यों! कि जैसे किसी ने वीणा के तारों पे

    एक वार कर के छोड़ दिया हो।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कर्मदेव पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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