Font by Mehr Nastaliq Web

महास्वप्न

mahasvapn

प्रियंकर पालीवाल

अन्य

अन्य

और अधिकप्रियंकर पालीवाल

    कुछ सुना तुमने

    प्यार की हवाओं ने अब रुख़ बदल लिया है

    स्नेह की नदी अब अपने चतुष्कोणीय प्रवाह के साथ

    हमारी ओर मुड़ चली है

    खेतों में प्यार की फसल लहलहा रही है

    कुछ सुना तुमने

    ज़मीन की तासीर बदल गई है

    अब कुछ भी बोओ फसल प्यार की ही उगेगी

    स्नेह रक्तबीज बन गया है

    अब से वृक्षों की क़िस्में नहीं होंगी

    केवल स्नेह के बिरवे ही रोपे जाएँगे

    किसी ने हवा-पानी सब में स्नेह घोल दिया है

    राजहंस अब स्नेह की लहरों पर ही तैरेंगे

    सोनपाखी प्यार में ही उड़ान भरेंगे

    और प्यार ही गाया करेंगे

    कुछ सुना तुमने

    स्नेह की नदी ने मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे को माँज दिया है

    पंचनदों में स्नेह का उफान है गंगोत्री अब स्नेह की गंगोत्री है

    और भारत है स्नेह का प्रायद्वीप

    कुछ सुना तुमने

    सारे अवरोधक बाँध तोड़ चुका है स्नेह

    गाँव-गली घर-आँगन चौबारे स्नेह से पगे हैं

    प्रेम का ज्वार वृक्ष की सबसे ऊँची फुनगी से होता हुआ

    मस्जिद की मीनार और मंदिर के कलश को डुबो चुका है

    बुजुर्गों की कहनूत है—

    ऐसा ज्वार

    पहले कभी नहीं देखा

    ये हो क्या रहा है?

    सब अचरज में हैं

    वातावरण में बारूद की नहीं चंदन की महक है

    लालिमा अब रक्त की नहीं गुलाल की है लाज की है

    बंदूकें अब स्नेह की बौछार कर रही हैं

    बच्चे पिचकारियों और बंदूकों में फ़र्क़ भूल गए हैं

    कुछ सुना तुमने

    स्नेह की भाषा यौवन पर है

    विस्फारित नेत्र विश्वास नहीं करते

    स्नेह से सराबोर सब सकते में हैं

    स्नेह का वेगवान प्रवाह

    तोड़ चुका है छंदों के बंधन

    सारे कवि स्तब्ध हैं सुख की अतिशयता से

    बह चली है त्रिवेणी

    काव्य की स्नेह की सुख की

    कुछ सुना तुमने

    धरती से स्वर्ग तक सेतु बन गया है

    अब मानव स्वर्ग का आकाँक्षी नहीं

    देवताओं में मानुष जन्म की होड़ है

    कुछ सुना तुमने

    अब मैं युगदृष्टा हो गया हूँ

    सामान्य जन नहीं, मसीहा हूँ स्नेह का।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दृष्टि-छाया प्रदेश का कवि (पृष्ठ 28)
    • रचनाकार : प्रियंकर पालीवाल
    • प्रकाशन : प्रतिश्रुति प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए