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भड़ुआ वसंत

bhaDua wasant

गोरख पांडेय

गोरख पांडेय

भड़ुआ वसंत

गोरख पांडेय

रोचक तथ्य

गोरख पांडेय ने यह कविता उन दिनों लिखी थी, जब 1976 की वसंत पंचमी के दिन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना-दिवस मनाया जा रहा था। इमर्जेंसी-राज में ‘इंदिरा इज इंडिया’, ‘इंडिया इज इंदिरा' जैसे क़सीदे काढ़ने के लिए कुख्यात कांग्रेसी नेता देवकांत बरुआ 'वसंतोत्सव' में अतिथि के तौर पर आए। उनके स्वागत में कुलपति, बनारस का पूरा प्रशासन और अधिकारी-गण हाथ जोड़े खड़े रहे। लेकिन छात्रों के व्यापक हिस्से में इस घुटना-टेकू मानसिकता का विरोध हुआ। गोरख पांडेय उन दिनों बिड़ला हॉस्टल में रहते थे। सन् 1976 के नए साल के लिए उन्होंने एक गुलाबी डायरी बनाई थी। इसी नई डायरी में उन्होंने 5 फ़रवरी 1976 को यह कविता लिखी। —उर्मिलेश

पेड़ों से

आपातकालीन चुप्पी

लिपटी हुई थी

ग़रीब की ख़्वाहिशों की तरह

पत्तियाँ धीरे-धीरे झर रही थीं

और तमाम हरकतें धारा 144 से

रद्द कर दी गई थीं

जब शहर में एलान हुआ—

वसंत रहा है

कपड़ों पर चमकीले रंग चढ़ा लो

सड़कें साफ़ हो चुकी हैं

बंदूक़ के आगे आज़ादी से

क़तार में खड़े हो जाओ

यहाँ उदास चेहरों को जगह नहीं मिलेगी

उन पर मुस्कुराहट ओढ़ लो

ग़ुस्से को विदा करो

हाथ जोड़ लो अदब से

सिर झुकाते हुए तालियाँ बजाना सीख लो

तुम अभी तक नाचने-गाने के लिए

तैयार नहीं हुए जबकि मौसम

ख़ून की तरह रंगीन हो रहा है

उठो, वसंत रहा है

तोड़ कर रही-सही पत्तियाँ

और बचे-खुचे सारे फूल तोड़कर

सैकड़ों स्वागत-द्वार बनाए गए थे

इस्पात की भारी घरघराती हुई आवाज़ के साथ

सैकड़ों तुरही और नगाड़े लाए गए थे

हाथी, घोड़े, गदहे और

कुत्ते तक सजाए गए थे

अचरज और इंतज़ार के

इन साँस रोक देने वाले लम्हों में

वह उतरा आसमान से

—अब हाथ हिला रहा है

नाटा, गोल-मटोल, तुंदियल

मोटी गर्दन के ऊपर हवाई ख़ुशियों का जाल बिछा रहा है

सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष के चोले में

समाजवादी रंगमंच का भड़ुआ

मीसा का ढिंढोरची

आपातकाल का मुख़बिर

वसंत रहा है

जैसाकि पहले से तय था

समारोह में गदहे और कुत्ते सबसे

आगे थे स्वागत में गीत गाते हुए—

‘आप महान हैं, हे भड़ुआ वसंत!

जो आपने हमें खुल कर रेंकने

और सारी हरियाली चरने की

छूट दे दी है

आपकी कृपा से आपात स्थिति आती है

जो आदमी के लिए हथकड़ी

और हम-सरीखे सभ्य जानवरों के लिए

अपार मुनाफ़ा लाती है

ज़ाहिर है कि आपके आने से

कुत्तागीरी पर जवानी छा जाती है

बँधे-बँधे-से लोग क़तारों में खड़े रहे

टकटकी बाँध कर देखते हुए

वसंत बग़ल से गुज़र रहा था

मोटर पर सवार बंदूक़ाें से घिरा

उस ओर बढ़ रहा था

जहाँ दुनिया के ज्ञान का गोदाम था

यानी जहाँ विश्वविद्यालय था

अज्ञान का प्रचार करना

जिसका सबसे ज़रूरी काम था

विश्वविद्यालय में यों तो हर साल

एक दिन वसंत आता है

लेकिन आपातकाल का वसंत

इतिहास में पहली बार आया था

चिकना, गंजा

खादी के दूधिया कपड़ों में

छेड़-छाड़ के ख़िलाफ़

अनुशासन के बीस धागे लाया था

विद्याओं की राजधानी में

राजा वसंत का स्वागत!

सरस्वती कूल्हे मटकाकर नाचने लगी

फूट पड़े वेदों के स्वर—

‘ओम स्वागत वसंत

हमें लेक्चरर से रीडर बना दो

ओम वसंत हवामहे

हमें रीडर से प्रोफ़ेसर

ओम स्वागत वसंत हवामहे

हमें भारी धनों वाली कुर्सी दिला दो’

कुलपति की आवाज़ और बुलंद थी—

‘हे वसंत, ये फूल, ये पेड़, ये लड़के,

ये लड़कियाँ, ये वेद, ये कविताएँ, यह ज्ञान-विज्ञान

तम्हारे चरणों में प्रेम से समर्पित

सिर्फ़ मुझे एक्सटेंशन दिला दो

हवामहे

प्रसन्न हो जाओ

आपातकाल के मुख़बिर

मीसा के ढिंढोरची

समाजवादी रंगमंच के भड़ुआ

लोकतंत्र के नाटे तानाशाह

वसंत तुम्हारी कीर्ति आकाश में

फैल रही है, समुद्रों को पार कर गई है

ज्वालामुखी पर कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए वसंत

मुझे एक्सटेंशन दिला दो

मैंने तुम्हारे स्वागत में

विश्वविद्यालय को जुलूस बना दिया है

देखो—

लड़कियों की झाँकी

देखो, इंदिरा के इशारे पर नाचती हुई कठपुतलियाँ

इस्पात ढालता मज़दूर—कठपुतली

हल चलाता किसान—कठपुतली

क, ख, सिखाता अध्यापक—कठपुतली

एक रानी कठपुतली

बीस धागों में बँधी कठपुतलियों की

उपज बढ़ाने का आदेश दे रही है।

देखो : कला की झाँकी

कवि, चित्रकार, दार्शनिक,

व्याख्याता क़तार से बढ़ रहे हैं

गले से लटकती तख़्तियों पर नज़र जमाए

प्रधानमंत्री का हाथ मज़बूत करो

विचार, रंग और भावना

अर्पित करो

अनुशासन के पैर पर

देखो : समाज-विज्ञान की झाँकी

मिस्टर छछूंदर बिना दहेज के

ब्याह करने चले हैं,

समाज और विज्ञान दोनों

उनके घोड़े की टाप-तले हैं

देखो : झाँकी विज्ञान की

आइंस्टाइन सापेक्षता के सिद्धांत के साथ

परमवीर हनुमान की भक्ति में नाक रगड़ रहा है

कुर्सी के क़रीब होने के लिए

जाति की पूँछ पकड़ रहा है

यह रही तकनालाजी

देखो टैंक, जहाज़ देखो

ये गिरते हुए लोग देखो

ये दनदनाती गोलियों के अंदाज़ देखो

अब कृषि की बारी है

मोटर में बैठा हुआ किसान

देखो, किसान कितना गँवार है

अभी तक वह जितना ग़रीब है

उतना चमार है

लेकिन झाँकी में किसान सबसे

तेज़ आवाज़ में गा रहा है

भूल जाओ कि जो किसान है

और अन्न उगा रहा है

कि

वह भर पेट खाना नहीं पा रहा है

भूल जाओ कि अब भी ज़मीन का मतलब

ज़मींदार का जूता, भुखमरी और कुर्क अमीन है

यह झाँकी है जहाँ किसान है,

ढोल-मजीरा है

और एक गूँजती हुई ग़लतफ़हम

आवाज़ बाक़ी है

सब कुछ—

हे भड़ुआ वसंत!

यह सब कुछ आपके चरणों में समर्पित है

भड़ुआ ने चेहरे पर

मुस्कुराहट का जाल पूरा तान दिया—

‘एक नया ज़ोमाना आया है, 26 जून से

एक नया ज़ोमाना आया है

जो कुछ आप देखते हो

वह इंदिरा जी की माया है

यह इंजीनियरिंग का विद्यालय है

जहाँ से परमाणु विस्फोट हुआ

काशी, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से

पहले की खुदी हुई नगरी है

हम्रा हिंदुस्तान में एकता की ज़ोरूरत है

हमने एक सूत्र में बाँधने के लिए

बीस रस्सियाँ बरी हैं

अभी और बरी जा रही हैं

बोला, सब ज़ोर से बोलो

इंदिरा इंडिया है

इंडिया इंदिरा है

दोनों में सिर्फ़ 'र' का फ़र्क़ है

ब्रह्म एक है

बाक़ी जनता देश, समाज एक झूठा तर्क है

हम सब बराबर करेगा

घर को जेल और जेल को

घर करेगा

शोषक और शोषित, झूठ और सच

आदमखोर और आदमी

अब एक घाट पानी भरेगा

आपातकाल में तुम लोग

आच्छा गाता है

आच्छा-आच्छा तालियाँ बजाता है

तुम लोग आच्छा नाचता है

अनुशासन माँगता है

हम पुलिस और फ़ौज का आच्छा

इंतज़ाम करेगा

यह सर्व विद्या की राजधानी है

यहाँ पूर्व में पश्चिम है

पश्चिम में पूर्व है

पुरानी में नई और

नई में पुरानी है

सावधान हो जाओ

अगर कहीं से चीख़ रही है

तो उसे गिरफ़्तार करना है

क्योंकि देश को

इन मामूली चीज़ों से ख़तरा है

हमें पहाड़ों को पार करना है

तुम झुक कर हमारा सलाम करेगा

हम पुलिस और फ़ौज का आच्छा

इंतज़ाम करेगा

बाजाओ तालियाँ

तालियाँ तालियाँ तालियाँ!'

स्रोत :
  • पुस्तक : समय का पहिया (पृष्ठ 72)
  • रचनाकार : गोरख पांडेय
  • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
  • संस्करण : 2004

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