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नौ बजे से

nau baje se

अनुवाद : पीयूष दईया

सी. पी. कवाफ़ी

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सी. पी. कवाफ़ी

नौ बजे से

सी. पी. कवाफ़ी

और अधिकसी. पी. कवाफ़ी

    साढ़े बारह बजे। बहुत तेज़ी से गुज़र गया समय

    नौ बजे से जब मैंने जलाया था लैंप,

    और बैठा था यहाँ आकर। मैं बैठा रहा हूँ बिना कुछ पढ़े,

    बिना कुछ बोले। निपट अकेला इस मकान में,

    भला किसके साथ बोल सकता हूँ?

    नौ बजे से जब मैंने जलाया था लैंप,

    मेरे जवान जिस्म का साया मँडराता

    रहा है मुझे पाने, याद दिलाने मुझे

    ख़ुशबुओं से लबालब भरे बंद कमरों का,

    मुद्दतों पहले गुज़रे कामविलास का—कितने बिंदास थे वे विलास

    और यह लाया है मेरी आँखों के सामने

    गलियाँ जिन्हें अब पहचानना तक मुश्किल है,

    अड्डे जो ख़त्म हो गए गहमागहमी वाले,

    रंगगृह और वे कहवाघर जो कभी होते थे।

    मेरे जवान जिस्म का साया

    उन चीज़ों को भी ले आया जो करती हैं उदास हमें

    परिवार का विलाप, बिछोह, जज़्बात मेरे अपनों के, जज़्बात

    मृतकों के, जिन्हें समझा गया कितना कम।

    साढ़े बारह बजे। कैसे गुज़र गया है समय।

    साढ़े बारह बजे। कैसे गुज़र गए हैं साल।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 85)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : सी. पी. कवाफ़ी
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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