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कवि तरंग

kawi tarang

मौला बख़्श कुश्ता

अन्य

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और अधिकमौला बख़्श कुश्ता

    ख़ुदा ने चंद शब्दों की यह शक्ति की अदा मुझको

    समझता है ज़माना इसी कारण बा-ख़ुदा मुझको

    बहुत गहरे समंदर में कभी दिल ले गया मुझको

    विचार आया तो अंबर से परे आया लगा मुझको।

    कि जब शेअरों में मैं भर दूँ कभी सुंदर विचारों को

    ख़ज़ाने में लुटाऊँ यों अथाह शब्दों के प्यारों को।

    अँधेरा के बीती रात जब दुनिया पे छा जाए

    पँखेरू घोंसलों में चैन और आराम जब पाएँ

    कि जब आकाश मस्ती से स्वप्न में सोने चल देता

    तो मेरी सोच धरती से गगन तक छा रही कहता।

    मेरे मस्तिष्क मन जागृत हुए लगते मुझे सँवरे

    सोच मेरी में धरती गगन तक सब क़ैद लगते हैं।

    मेघों से जो उपजती कल्पना प्रिय ठौर हो जाए

    सुखन मन से उठें आवाज़ दे ज्ञान हो जाएँ

    सृजन फूटें कि रत्नों की वहीं इक खान हो जाए

    मेरे हर विषय का यह रंग प्रभु की शान कहलाए।

    मैं अपने रौ में आऊँ तो करामातें दिखा जाऊँ

    कभी हँसते रुला दूँ और कभी रोते हँसा जाऊँ।

    किसी के आँसुओं को तुरंत सागर-सा प्रवाह दे दूँ

    कोई विश्वास में भी ले, गगन में आह मैं दे दूँ

    सुनाऊँ वाणी ऐसी सिंह को पिंजरे में भर दूँ मैं

    कभी साहस दूँ चिड़ियों को, कि बाज़ों संग कर दूँ मैं।

    कभी आशा-निराशा के कई नक़्शे बनाऊँ जब

    तरंगों का भरा संसार सागर में दिखाऊँ तब।

    पुष्प की शोख़ियों में रंग कोमल गंध की गाथा

    तराने बुलबुलों के और कोयल की मधुर भाषा

    पपीहा कह रहा मन खींचते मंजर की चर्चाएँ

    पतंगा जल मरे दीपक में ऐसी मन की गाथाएँ।

    किसी की ज़िंदगी और मौत का नक्शा बताऊँ मैं

    किसी के हुस्न का और इश्क़ का क़िस्सा सुनाऊँ मैं।

    कभी हो इन सितारों में मुझे भी चाहने वाली

    कहीं फूलों की हलचल हो, बने वह ब्याहने वाली

    उधर वेदी पे भीगें परियाँ सब सराहने वाली

    कहीं खो जाऊँ तो पाए खोज निबाहने वाली।

    मेरी इच्छा कभी गरजे, कभी बरसूँ बहारों में

    पिला के मय कभी मतवाली हर शै को बनाऊँ मैं।

    किसी जर्रे को चमकाऊँ तो सूरज मात खा जाए

    गिराऊँ मैं जिसे नज़रों से आँसू बन बिखर जाए

    मेरी यह काव्य ऋतु सूखे से पत्तों को हरा कर दे

    मेरी सजनी तू सुन इक गीत धरती को खरा कर दे।

    गुज़ारी उम्र पंजाबी की सेवा करते ही कुश्ता

    ख़ुदा जाने मिलेगा क्या मुझे कुछ महँगा या सस्ता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 42)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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