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लिखने के नक्षत्र पर

likhne ke nakshatr par

मलय

अन्य

अन्य

मलय

लिखने के नक्षत्र पर

मलय

और अधिकमलय

    जब सूरज लिखने के

    नक्षत्र पर होता है

    लू भी नहीं जलाती

    और धूप

    हमारी इंद्रियों तक

    उतर आती है

    हवा थोड़ी-सी

    गरम होती-सी

    हमारे कान कुंडलियों के होंठों पर

    अपनी सीटी बिना बजाए

    बैठी रहती है सन्नाई

    अंदर मथते समुद्र तल से

    हिलोर रेखाओं में ढलकर

    आवाज़ें आती हैं

    जिनमें कोई पहाड़-सा निकलता शंख

    गूँजों की भाषा में

    खुलने लगता है—धीरे-धीरे

    पत्थर की तरह भारी

    बेचैन घबराहट

    गरजते बादलों की चुप में

    बदल जाती है

    इन्हीं धड़कते धक्कों में से

    खिड़कियाँ कई-कई खुलती हैं

    जागती दुनिया का सामना

    एक बड़े

    आईने की तरह होता है

    मध्याह्न का सूरज

    हमारी छाती पर से होता हुआ

    साँसों के हिसाब में से

    समय को तपाकर

    छान लेता है

    धूप को सौंपता

    ग़ायब-सा रहकर

    हममें से हो-होकर

    उम्र तक उगा रहता है

    लिखने के नक्षत्र पर से

    आगे होकर

    निकलता

    हम में से हो-होकर!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मलय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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