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हथेलियाँ

hatheliyan

रेनू यादव

अन्य

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रेनू यादव

हथेलियाँ

रेनू यादव

और अधिकरेनू यादव

    ठिठुरते ठंड में

    नम धूप की छूअन,

    एक सूखा पत्ता

    कहीं खड़का

    ओस की बूँदें

    ढुलक पड़ीं दूब से,

    सर में तैरती

    पनडुब्बियाँ

    उड़ पड़ीं एक साथ

    और

    सूरज ने अँधुआएँ मुँह

    चूम लिया

    पृथ्वी के माथे को

    ललाई उतर आई

    आसमान के गालों पर

    ललाट से हृदय में उतरना

    कुछ क्षण का नहीं

    जीवन का होता है

    बेहद घुप्प अँधेरे

    की तलछट में

    एक रोशनी मुस्कराई

    बरसों से दबी कहीं

    उलझे तारों को

    सुलझाने की

    तमाम कोशिशों में,

    ज्यों नरम रूई के फाहे-सा

    मासूम बच्चे को

    गहरी नींद

    में मुस्कराते देख

    मुस्करा पड़ी

    माँ की दुनियाँ

    करिखई पतुकी

    में थरथराते चावल

    के ऊपर नाचते

    दूध ने

    ने फुसफसा कर

    माफ़ी माँगी

    और हँस कर फफा पड़ा

    ढ़क लिया पतुकी की

    करिखई को,

    पूजा पूर्ण हुई

    तवे पर फूली रोटी को

    देख आँखों मे समाई

    गरम एहसासों

    की भूख ने चूम लिया

    उदर के अधरों को,

    किसी आदिकवि

    की कविता फीकी

    पड़ गई

    लिखना चाहती हूँ

    उन हथेलियों को

    पर वे हथेलियाँ

    किसी भाषा में

    अँटती नहीं

    किसी खाँचे में बँटती नहीं

    किसी तारिख़ में पूरती नहीं

    छोटे पड़ते हैं सातों द्वीप

    और

    आठों दिशाओं का

    यौवन

    उसकी हथेलियाँ

    सिर्फ हथेलियाँ नहीं थीं

    थी पूरी की पूरी पृथ्वी

    थी उनमें बहकते पलों को

    थाम लेने की ताक़त...

    कबीर को पूरा संसार मोह-ग्रस्त दिखाई देता है। वह मृत्यु की छाया में रहकर भी सबसे बेख़बर विषय-वासनाओं को भोगते हुए अचेत पड़ा है। कबीर का अज्ञान दूर हो गया है। उनमें ईश्वर के प्रेम की प्यास जाग उठी है। सांसरिकता से उनका मन विमुख हो गया है। उन्हें दोहरी पीड़ा से गुज़रना पड़ रहा है। पहली पीड़ा है, सुखी जीवों का घोर यातनामय भविष्य, मुक्त होने के अवसर को व्यर्थ में नष्ट करने की उनकी नियति। दूसरी पीड़ा है, भगवान को पा लेने की अतिशय बचैनी। दोहरी व्यथा से व्यथित कबीर जाग्रतावस्था में हैं और ईश्वर को पाने की करुण पुकार लगाए हुए हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रेनू यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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