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मैंने सराफ़ से पूछा

mainne saraf se puchha

सर्गेई येसेनिन

अन्य

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सर्गेई येसेनिन

मैंने सराफ़ से पूछा

सर्गेई येसेनिन

और अधिकसर्गेई येसेनिन

    मैंने पूछा उस सराफ़ से

    देता जो आधे तुमान के बदले रूबल,

    कैसे कहूँ फ़ारसी में सुंदर लैला से,

    शब्द 'प्यार'-सा नाज़ुक कोमल।

    मैंने पूछा उस सराफ़ से, वान तरंगों

    जैसे हौले, मंद पवन-से कोमल स्वर में,

    कैसे कहूँ फ़ारसी में सुंदर लैला से,

    'चुंबन'-जैसा शब्द कि जो गूँजे अंतर में।

    और पूछ ही बैठा मैं फिर उस सराफ़ से,

    अपनी हया कहीं दिल में गहरे दफ़नाकर,

    कैसे कहूँ फ़ारसी भाषा में लैला से,

    “तुम मेरी हो, केवल मेरी हो सुन्दरि!

    वह सराफ़ थोड़े-से शब्दों में यों बोला,

    “चर्चे किए नहीं जाते हैं कभी प्यार के,

    सिर्फ़ भरी जाती हैं आहें वीराने में,

    नयन दमकते हैं नीलम-से ग़म सँवारते।

    नाम नहीं होता है कोई भी चुंबन का,

    वह तो नहीं क़ब्र पर अंकित अक्षर,

    सुर्ख़ गुलाबों-सा होता है नाज़ुक चुंबन,

    पंखुड़ियाँ घुल जाती हैं होंठों पर।

    प्यार किसी भी आश्वासन की माँग करता,

    उसके साथ सदा रहते हैं सुख-दुख के पल,

    जो हाथ उठा सकते हैं बुर्क़ा, सिर्फ़ वही तो

    कह सकते हैं : 'तुम मेरी हो, मेरी केवल'।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक रूसी कविताएँ-1 (पृष्ठ 112)
    • संपादक : नामवर सिंह
    • रचनाकार : सर्गेई येसेनिन
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1978

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