लामबंद औरतें

lamband aurten

असीमा भट्ट

असीमा भट्ट

लामबंद औरतें

असीमा भट्ट

चौराहा जाम कर

एक दूसरे का हाथ अपने हाथ में लेकर

लामबंद हैं

औरतें

चिलचिलाती धूप में

तुमने कर दिया सरकार का चक्का जाम

व्यवस्था है लाचार और मजबूर

रोष में बरसा रही हैं लाठियाँ तुम लोगों पर

मुट्ठी भींच कर और भी कस कर तुम सबने ज़ोर से पकड़ रखा है

अपना हाथ दूसरे के साथ

वह छोड़ रहे हैं आँसू गैस के गोले

कर रहे हैं पानी की बौछारें

तुम बाग़ी औरतों पर

तुम्हारे लिए पीने का पानी तक नहीं हैं

भरी दुपहरिया में

जहाँ सड़कें भी तप रही हैं

रेगिस्तान की तरह

लहू से लथपथ अपने सर पर तुम सबने बाँध रखी है

अपनी ही साड़ी और दुपट्टे के चिथड़े को बनाकर कफ़न

ज़ोर-ज़ोर से नारा लगाते हुए बढ़ती जाती हो आगे, और भी आगे

वह खींच रहे हैं पकड़ कर तुम्हें केश से और फाड़ रहे हैं तुम्हारे कपड़े

जैसे घसीटी गई द्रौपदी भरी सभा में

और मौन था पूरा का पूरा राजप्रसाद

वहशतगर्दों की आँखों में है नफ़रत और वासना औरतों के लिए

जो उठा रही हैं ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ खुली सड़क पर

जिसने हिलाकर रखा दिया है प्रशासन

जिसने डाल दी है व्यवस्था की नाक में नकेल

बौखलाए हुए ज़ुल्मी

अपना ज़ुल्म और बढ़ा देते हैं

बरसाते हैं आग के गोले

तुम सब फिर भी बढ़ती जाती हो

आग के शोलों को चीरते हुए

कायर बलात्कारी यह नहीं जानते

जिस आग से वे तुम्हें डरा रहे हैं

वह तुम अपने सीने में रखती हो

और रोज़ फूँक मार कर उससे अपना चूल्हा सुलगाती हो।

स्रोत :
  • रचनाकार : असीमा भट्ट
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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