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क्या मालूम शायद

kya malum shayad

अनुवाद : सुदर्शन शर्मा

वनिता

अन्य

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वनिता

क्या मालूम शायद

वनिता

और अधिकवनिता

    जब वादी में नमी हो

    आँखें सजल हों

    तो उतावले मत होना मेरी जान

    ऐसे जीर्ण समय में

    बादल बस रवाना ही हुआ होता है

    घटाएँ चढ़ने को होती हैं

    फिर बूँदें बरसती हैं

    ऐसे गर्जन-तर्जन के बाद

    मेह बरस ही जाता है

    पर हो सकता है बादल गुज़र ही जाए

    या बरसे तो सैलाब जाए

    जो होंगे दिलों में अफ़साने तो

    कोई पंछी पर फड़फड़ाएगा

    तो समझ लेना कुसुमन होने को है

    कोयल कूकने वाली है

    मोर नाचने वाला है

    और नए रंग खिल पड़ेंगे

    पर क्या मालूम नए रंगों को खिलते देख

    आँधियाँ बलवा करने लगें

    और नव-कुसुम धरती पर गिरें

    जब चहुँ ओर ख़ामोशी जैसी चुप हो

    फूल-पत्ती बुत हो

    घरों में अँधेर घुप हो

    तो याद रखना शायद दीपक जल पड़े

    या कोई किरण निकल पड़ी हो

    पर क्या मालूम

    मारक हवाएँ बहने लगें।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : वनिता
    • प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका

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