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कुसुम का आगमन

kusum ka agaman

कलानाथ मिश्र

अन्य

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कलानाथ मिश्र

कुसुम का आगमन

कलानाथ मिश्र

और अधिककलानाथ मिश्र

    अनगिन रंगों में मुस्काती

    चपल, चंचल

    मृदुल चाल

    इठलाती

    मदमाती

    रोम-रोम स्पंदित करती

    सुभग, सुवास फैलाती

    आई तुम मेरे आँगन...।

    सपनों को साकार बनाती

    इंद्रधनुषी छटा दिखाती

    रूप, लावण्य

    नैनाभिराम,

    स्नेह शिक्त अधरों से

    मेरे कपोल सहलाती

    आई तुम मेरे आँगन...।

    श्रृष्टि शिल्प का

    मोहक रूप

    नैसर्गिक शोभा बिखराती

    जीवन में,

    प्राण शक्ति अर्पित करती

    आई तुम मेरे आँगन...।

    कामदेव कमान की

    अविजित कलाप तुम

    हिय में सौ-सौ राग़ जगाती

    आई तुम मेरे आँगन...।

    आई मधुऋतु के संग-संग

    रवि के सप्तरंग

    अभिमिश्रण,

    धारण कर

    असीम रूप-रंग

    हरने दुःख मालिन्य

    भू पर

    भरने पुलक, राग़,

    उल्लास, 

    फागुन को अनुरंजित करने...।

    आई तुम मेरे आँगन...।

    मृत्युलोक यह

    किन्तु अली!

    व्यथित नेत्र से

    देखा, तुमको भी

    कुम्हलाते,

    जीर्ण-शीर्ण पंखुरियों का 

    अभित्यजन करते 

    शांत, तटस्थ, सहिष्णु, 

    अनाशक्त भाव से,

    स्वीकृत करते  

    सृष्टि का

    चिरंतन अनुशासन।

    हुई विलीन तुम

    आत्मस्थ भाव से

    कांतिहीन कर

    इस आँगन को 

    धीरे...धीरे...धीरे...

    जीवन के उपवन से...।

    आई देने तुम

    सीख मनुज को

    अपनाने सृष्टि का

    अक्षर अनुशासन

    शाँत, सरल, संयमित,

    तटस्थ भाव से।

    प्रिय! आओगी पुनि तुम

    अनुरंजित करने

    इस उपवन को 

    निज बीज से

    अंकुरित होकर

    वसुधा की कोख़ से।

    पुनः ऋतुराज

    पीतांबर पसार

    करेंगे तुम्हारा

    अभिवादन

    पुनः नैसर्गिक छटा

    बिखेरोगी

    तुम भू पर।

    रवि रंग भरेगा तुममें

    फागुन फिर

    रंगीन बन जाएगा।

    अनगिन रंगों में

    मुसकाओगी 

    चपल, चंचल,

    मृदुल चाल चलोगी 

    इठलाओगी,

    इतराओगी 

    रोम-रोम स्पंदित करती

    मुसकाओगी। 

    फिर आओगी तुम मेरे आँगन।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कलानाथ मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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