कुछ अनकही बातें

kuch anakhi baten

आसित आदित्य

आसित आदित्य

कुछ अनकही बातें

आसित आदित्य

वह जिसने खो दिया था स्वयं को मुझमें कहीं

उसका हृदय छोटी-छोटी ख़ुशियों का संग्रहालय था।

बड़ी-बड़ी बातें मेरी

मेरी पूर्व प्रेमिकाओं के नाम थे जैसे—

हज़ारों बार आकर मेरे होंठों पर ही ठहर जाते।

उधर विरह की अग्नि में वह जली-मरी

और इधर कुछ बातें दफ़्न हो गईं

भरभरा कर गिरे मेरे ख़्वाबों के आशियाने में।

मुझे कहना था उससे

कि उसकी दो आँखों के अलावा

इस दुनिया की करोड़ों आँखों के आँसू सूख चुके थे मेरे लिए।

मुझे कहना था उससे

कि उसका प्रेम पाकर उतना ही करुण हो जाता था मैं

जितना थे सूली पर टँगे लहूलुहान यीशु।

मुझे कहना था उससे

कि आधी रात जब बादलों के कान में

फुसफुसाता था मैं नाम उसका

तब सितारे ख़ुद-ब-ख़ुद ढल जाते थे उसके नाम की आकृति में।

…और मुझे ये भी कहना था उससे

कि मेरी जान देखना एक रोज़ हमारे पाक प्यार की लाश पर

मँडराएँगे परंपराओं के भूखे गिद्ध।

हाँ, मुझे ये सब कुछ कहना था उससे।

हे पाठक! तुम्हीं बताओ,

मेरी इन बातों को सुनने एक एक दिन वह लौट आएगी न?

स्रोत :
  • रचनाकार : आसित आदित्य
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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