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क्षण में अद्भुत होता...

kshan mein adbhut hota. . .

विंदा करंदीकर

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विंदा करंदीकर

क्षण में अद्भुत होता...

विंदा करंदीकर

और अधिकविंदा करंदीकर

    मुझे मेरा मैं-पन नहीं मिला था—

    यद्यपि समझ में आया था,

    चहकने वाले पत्ते

    उषा का दूध पीकर

    बुदबुदाते हैं क्यों टिप-टिप करता गाना

    मुझे मेरा मैं-पन नही मिला था—

    यद्यपि भाँप लिया था,

    सीधे-सादे दिखाई देने वाले ये पर्वत

    अपने शरीर का आडंबर फैलाकर

    घुटनों में अपना भारी सिर खोलकर

    राह देखते है अगले उग्र क्षण की

    मुझे मेरा मैं-पन नहीं मिला था—

    यद्यपि भाँप लिया था,

    आम्र-तरु की सगुण छाँह के नीचे

    जुगाली करने वाले भैंसे को

    स्वप्न भोला अभी भी ज्ञानेश्वर का आता है।

    फिर भी मुझे मेरा मैं-पन नहीं मिला

    मुझे यह पता नहीं चला कि मैं भी हूँ:

    यद्यपि समझ में आई थी

    महानुभावी भाषा और उसके संकेत

    परंतु जब

    तेरे हृदय का अवरोधित गान

    गाने लगा स्पर्श-पल्लव की गाथा

    और क्षण फूटा,

    मैंने अपना मैं-पन अनुभवा, रक्त-स्वप्न की भाँति।

    मैं लड़खड़ाया,

    चाँद से, सूरज से ठोकर लग गई

    और मुझे बिजली भयानक, स्वेदगंधिता लगी।

    मुझे जान पड़ा मैं भी हूँ, हूँ,

    मैं भी था अधिक मैं ही होकर

    त्रिगुण सत्य यह त्रिकालदर्शी

    तेरे अंगों पर से उमड़ा।

    और वह निगलने के लिए

    चोंच खोली धीमे से चित्रलिपि ने, मेरे मन के भीतर।

    अब भी अंजाने,

    अनुभूति की याद का दबाव विलक्षण पड़ता है

    और क्षण फूटता है।

    और बाद में

    क्षण में अद्भुत होता है...

    सहज धीमे से मेरापन मेरे पास आता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 605)
    • रचनाकार : विंदा करंदीकर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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