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अहाँ बिसरि जायब हमरा

कृष्णमोहन झा

अन्य

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कृष्णमोहन झा

अहाँ बिसरि जायब हमरा

कृष्णमोहन झा

और अधिककृष्णमोहन झा

    हमर चारूकातक चीज रहत यथावत्—

    फूल-पातक रंग ओतबे टुहटुह

    मौसम जतबा सम्हारि सकतै ओकरा

    जिम्मड़िक ठाढ़िपर बैसल धनछोहक डेन

    रहत ओतबे बेकल

    जतबा कोंढ़क धाह ओकरा बनेतै

    हमर मोनक देह ओसारक पीठ रहत ओतबे सरबल

    एहि धरतीक नाभिपर बैसलि एक टा स्त्रीक उसझब

    एहि चिनुआर-ओसार

    घर-दुआरकेँ जतबा भिजेतै...

    सभ किछु रहत यथावत्

    खाली पनबट्टीमे राखल एक टा सरौताकेँ छुबऽबला

    आँखिक इजोत

    पिपरमिंटक पैखना लगा कऽ हवामे बिला जायत

    नेरूक पीठपर चतरल हाथक स्पर्श

    गोहालक गोंत अन्हारमे कतहु

    हाफक बटन जकाँ हरा जायत

    कोड़ोमे दुबकल बगरोक बोलीकेँ पढ़बाक सेहन्ता

    देहक भाउरिमे घूमि-घूमि कऽ सरा जायत...

    एक दिन एकादसीक पारनक बाद

    तौनीमे मुँह झपने जखन नीनक आवाहनमे रहब व्यस्त

    आकि जिनगीक कोनो नीक-अधलाह काजमे ओझरायल-सोझरायल रहब

    चक्रवातक पीठ पर दुलकैत एक टा गाड़ी आयत

    हमरा केओ

    ओहिपर चढ़ा कऽ पड़ा जायत

    तखन सभसँ पहिने

    कुर्सीक पौआकेँ कुतरैत घूनक समुदाय करत शोक-प्रस्ताव

    फेर डेढ़ीपर ठाढ़ कटहरक गाछ

    पीयर पात खसा कऽ व्यक्त करत अपन गिलगर मनोभाव

    तकर बाद

    लोकबेदक कान-उसझबमे घर-दुआर दहा जायत

    हमरा कपड़ा-बस्तरकेँ

    बहुत दरेगसँ फरकीपर बान्हि-छान्हि

    चारि कनहापर एक गोटाक स्मृति लदने राम-राम जपने

    डबडबाइत आँखिये

    जखन आरा दिस अहाँ सभ विदा होयब

    तँ लगातार अकानैत बेर-बेर उपर तकैत झबरा कुकूरक अतिरिक्त

    आर केओ हमर बोली-बचन नहि सूनि पायब

    पा भरि चानन आध सेर घी

    एक ढेरी लकड़ीकेँ जरा-तरा कऽ

    अहाँ सभ हमरा

    निरंतर धूमिल होइत

    खिस्साक एक टा कोन्टीमे स्थापित कऽ बिसरि जायब

    मुदा टुग्गर चिलका जकाँ अहाँ सभक मुँह तकैत

    असंख्य नक्षत्रक ओलतीमे ठाढ़ भेल भिजैत

    हम एक टा अनंत प्रवासकेँ बितायब

    स्रोत :
    • पुस्तक : एकटा हेरायल दुनिया (पृष्ठ 77)
    • रचनाकार : कृष्णमोहन झा
    • प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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