बुद्धसँ
नहि तथागत
एना नहि भेटैत अछि मुक्ति
अहाँ तँ कहियो
दूधक गंधसँ सुवासित चिलकाक
भमरा सन आँखकेँ निहारैत
पल प्रतिपल
अपनाकेँ पुनर्जन्म लैत देखिये नहि सकलहुँ
अहाँ तँ
हाड़तोड़ मेहनतिक बाद
रोटी आ पियाउज अमृत स्वादसँ अनवगते रहलहुँ
आ आखर मचानपर
नीक प्राचीन मदिरासँ
आचमन कैये नहि सकलहुँ कहियो
कोनो एहेन क्षणमे
जखन ई जीवन
जर्जर पलस्तर जकाँ झहरि रहल हो बाहर
आ भीतर एक टा झंझावात उठि रहल हो
तखन कोनो स्त्रीक छाहमे कहियो
कोनो अर्थक संधान करब अहाँसँ पारे नहि लागल
फेर अहाँ की जानऽ गेलियै जे की होइ छै मुक्ति
- पुस्तक : एकटा हेरायल दुनिया (पृष्ठ 43)
- रचनाकार : कृष्णमोहन झा
- प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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