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कोलियारी की साइकिलें

koliyari ki saikilen

चाहत अन्वी

अन्य

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चाहत अन्वी

कोलियारी की साइकिलें

चाहत अन्वी

और अधिकचाहत अन्वी

    कोलियारी से कोयला केवल मालगाड़ियों से

    कारख़ाने नहीं जाता या

    विद्युत संयत्रों तक पहुँचने की यात्रा

    सिर्फ़ ट्रकों पर नहीं की जाती

    कुछ यात्राएँ जटिल होती हैं

    इतनी ही जटिल जितनी सीलन भरी अँधेरी सुरंगों में रोशनी का पहुँचना

    या जैसे ये बता पाना कि झारखंड की ज़मीन के नीचे

    कोयला ज़्यादा है या आग?

    यहाँ खदानों में दबकर इंसान ज़्यादा मरे या संवेदनाएँ मरी

    आग और कोयले की बहस से दूर हैं कुछ साइकिलें

    और पैडल पर मज़बूती से टिके हुए उनके दो पैर

    ये पैर कितने बाहरी है और कितने स्थानीय?

    ये राजनीतिज्ञों के लिए चुनाव का मुद्दा हो सकता है

    पर इस बहस से दूर मुझे

    सिर्फ़ इतना पता है कि इनके बच्चें भूखे हैं

    और एनीमिया से पीड़ित हैं स्त्रियाँ

    इन्हे अभी कई क्विंटल कोयले के साथ

    लंबी यात्रा पर निकलना है

    रिपोर्टें उन्हे कोयले के अवैध तस्कर मानकर

    प्रश्नांकित कर सकती हैं

    पर सच यह है कि राशन कार्ड के इस दौर में भी

    भूख से बड़ा उनका कोई

    राजनीतिक प्रश्न नहीं है।

    सुबह-सुबह उनकी साइकिलें हाँफ़ते हुए

    पहाड़ पर चढ़ती हैं

    और शाम होने तक पहाड़ हाँफ़ते हुए

    बोरे में बंद होकर उनके साथ पहुँच जाता है शहर के बाज़ार

    ‘पहाड़ों पर साइकिलिंग’

    जिसके पेट भरे हुए हैं उनके लिए शौक का विषय हो सकता है

    पर साइकिल के साथ भूख के संदर्भ

    पुलिस, मीडिया, सरकार से मत पूछिए

    उनसे पूछिए जिनके बच्चों की नींद में गेंदों के ठप्पों की

    आवाज़ नहीं आती

    जिनकी स्त्रियों की आँखों में

    मच्छलियाँ नहीं पीली उदासी के बादल हैं

    इन साइकिलों की परछाई और क़दमों की छाप

    हर उस सड़क पर है

    जहाँ कोयले ने मोरहा से धान को बेदखल कर दिया

    अब धुआँ कोलियारी के आकाश से ज़्यादा

    इन साइकिलों के फेफड़ों में है

    ये साल के पेड़ों के लिए साँस लेते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : चाहत अन्वी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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