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किसकी दस्तक से होती है सुबह

kiski dastak se hoti hai subah

महेश आलोक

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महेश आलोक

किसकी दस्तक से होती है सुबह

महेश आलोक

और अधिकमहेश आलोक

    किसकी दस्तक से होती है सुबह

    मुर्ग़े के बोलने से तो नहीं होती होगी

    कितनी भद्दी लगती है उसकी बाँग

    कर्कश

    कौए के मुँडेर पर बोलने से भी नहीं होती सुबह

    पूरा दिन ख़राब करना कौन चाहेगा

    इतनी बेसुरी गायकी से

    तो कोयल के बोलने से तो ज़रूर होती होगी

    चिड़ियों के चहचहाने और झुंड बनाकर

    रोज़ी-रोटी की तलाश में भागने से भी

    पिघल सकता है

    सूरज का हृदय

    क्या घास पर गिरती ओस की चोट से होती है सुबह

    या ठीक उस समय

    जब आपको लगता है कि अब

    हो गई है सुबह

    स्रोत :
    • रचनाकार : महेश आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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