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किसी का जाना

kisi ka jana

सोनी पांडेय

सोनी पांडेय

किसी का जाना

सोनी पांडेय

किसी का जाना मेरे लिए सृष्टि का सबसे निर्मम शोकगीत रहा

इस तरह विदा किया उसे जैसे विदा करता है पतझड़ शीत को

इस उम्मीद में देखती रही देर तक उस रास्ते पर टकटकी लगाए कि फूटेगी एक कोंपल यादों की फुनगी पर

मैंने विदा किया इस तरह उसे हर बार जैसे करती हैं माँएँ बेटियों को ससुराल

अलरा-दुलरा कर बाँधती हैं खोंइछा और अशीषती हैं जी भर नम आँखों से

मेरी आँखें तभी से गहरी हुईं समुद्र की तरह जिसमें यादों के मोती समाते गए और मैं मन की तिजोरी में भरती रही यादों की मणिमाला

किसी का जाना ज़रूरी नहीं कि हमें तोड़ और निचोड़ कर रख दे सृष्टि के ताखे पर

जला दे विरह की आग में, बहा दे आँसुओं के सैलाब में, सुखा दे वियोग के झोंको से

किसी का जाना बजता है ताउम्र

हमारे अंतस में उस आदिम शोक-धुन की तरह

जहाँ से उपजती हैं राग-रागिनियाँ और एक खिड़की खुल जाती है जीवन में

फिर से और फिर से देखने के लिए—

एक नई यात्रा, कुछ नए पड़ाव जीवन के...

स्रोत :
  • रचनाकार : सोनी पांडेय
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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