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खुले आसमान के नीचे

khule asman ke niche

सारिका सिंह

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सारिका सिंह

खुले आसमान के नीचे

सारिका सिंह

और अधिकसारिका सिंह

    खुले आसमान के नीचे

    आज़ाद-सी मैं

    क़ैद हूँ रिवाज़ों की

    दीवारों में,

    झूमती हूँ

    ख़ुद के बुने घुँघरू में

    मगर सिमटी हूँ

    किसी की धुन के खाँचो में,

    कभी बिंदिया मेरी

    माथे पे चाँद-सी चमकती है,

    कभी ये बन के बेड़ियों-सी

    मुझे रीतों में लुप्त करती है

    जो मैं सिंदूर की

    रेखा पे कभी चूकती हूँ,

    कई आवाज़ों में फिर

    घुट के ख़ुद को ढूँढती हूँ

    तेरी इज़्ज़त मेरी

    ओढ़नी में बसती है,

    जो ये सरके तो

    दूजी दुनिया

    मुझ ही पर हँसती है

    मैं सर से पाँव तक

    तेरी निशानी लगती हूँ,

    तू जैसे कल था

    वैसे ही आज भी निकलता है

    यूँ तो साथ तूने भी

    वही कसमे

    ज़ुबान पे लाईं थी कभी,

    फिर क्यों तू आज़ाद

    और मैं रस्मों में लिपटी हूँ॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : सारिका सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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