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ख़तरा है

khatra hai

सौम्य मालवीय

अन्य

अन्य

सौम्य मालवीय

ख़तरा है

सौम्य मालवीय

ख़तरा है

जिनको ख़तरा है, उनसे ख़तरा है

ख़तरा है झूठ को बढ़ती हुई नाक से

ख़तरा है अहं को हृदय की माप से

पत्थर को मत्थे से

भीड़ को निहत्थे से ख़तरा है

ख़तरा है

जिनको ख़तरा है, उनसे ख़तरा है

बरहना लाशों से ख़तरा है क़फ़नों को

जलती चिताओं से ख़तरा है ज़हनों को

पेड़ों से जंगल को,

मौसम से मंगल को ख़तरा है

जिनको ख़तरा है, उनसे ख़तरा है

ख़तरा है अट्टहास को आस से

ख़तरा है सभ्यता को इतिहास से

धर्म को विश्वास से

रुई को कपास से ख़तरा है

जिनको ख़तरा है, उनसे ख़तरा है

भाषा से व्याकरण को ख़तरा है

चरित्र को आचरण से ख़तरा है

आमरण को मरण से

हरण को भरण से

लहर को संतरण से ख़तरा है

जिनको ख़तरा है, उनसे ख़तरा है

ख़तरा है आत्म-निर्भरता को आत्म से

ख़तरा है आस्था को अध्यात्म से

राख को अबीर से

नाथ को कबीर से ख़तरा है

जिनको ख़तरा, उनसे ख़तरा है

अधिनायक को जन से ख़तरा है

क़ाफ़िले को प्रदर्शन से ख़तरा है

बुलेट-प्रूफ़ को नारों से

जुमलों को चीख़-पुकारों से

कामना को तन से, बात को मन से ख़तरा है

जिनको ख़तरा है, उनसे ख़तरा है

कर्मयोगियों को कर्म से ख़तरा है

बंधुत्व को चर्म से ख़तरा है

रीति को रिवाज से

मुखौटे को मिज़ाज से

समता को समाज से

आँधियों को कणों से

शिव को गणों से

नख़रे को कर्तव्य से

वक्तव्य को मंतव्य से

कल को आज से

गले को आवाज़ से

सड़क को नमाज़ से ख़तरा है

जिनको ख़तरा है, उनसे ख़तरा है।

स्रोत :
  • रचनाकार : सौम्य मालवीय
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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