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ख़ाली तरकश

khali tarkash

अमितोज

अन्य

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अमितोज

ख़ाली तरकश

अमितोज

और अधिकअमितोज

    दीवार पर टँगा हुआ ख़ाली तरकश हँस रहा है

    दीवार पर लटका ख़ाली तरकश क्या-क्या बता रहा है

    पहली क़लम माँ ने तोड़ी, घोल दी दूध में लोरी

    दूसरी कानी बन गई, बूढ़े बाप के लिए डंगोरी (सहारा)

    सोलह तीर पढ़ाई में तोड़े बाक़ी तोड़े यारों ने

    साहिबाँ के हाथों एक आया मिर्ज़ा करे विचार

    ख़ाली तरकश बीच भरा है ख़ाली मन शून्य-सा

    बक्की का इतिहास और जंडों का जुगराफिया

    ख़ाली तरकश क्या-क्या कह दे, इसका क्या एतबार

    यारो, यह ख़ाली तरकश तो नंगा सत्य गवाह है

    ख़ाली तरकश में से कभी तीर-सा चल जाता है

    सीधा मिर्ज़े को खलता है

    ख़ाली तरकश भला किसी का क्या लगता है

    साहिबाँ के ख़ाली तरकश से डर लगता है

    ख़ाली तरकश के सम्मुख है मिर्ज़ा भरा-भराया

    माथे में तो चमक रहा है ज़ख़्म कोई अनचाहा

    कैसी ऋतु यह उम्र है कैसी क्या आवारागर्दी

    साहिबाँ की डोली उठती मिर्ज़े की अर्थी

    रात-रात भर पीलू रोता तरकश की छाया यों

    ख़ाली तरकश अपलक देखे बोले काया से!

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 261)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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