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कविताबाज़

kawitabaz

अविनाश मिश्र

अन्य

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अविनाश मिश्र

कविताबाज़

अविनाश मिश्र

और अधिकअविनाश मिश्र

    जैसाकि वह चाहता था अपने एक कविता-संग्रह के प्रकाशन के बाद कि उसे पढ़ा और समझा जाए जबकि पढ़ने और समझने लायक़ साढ़े चार लाख से ऊपर किताबें थीं नगर के बीचोबीच स्थित उस लाइब्रेरी में जहाँ वह हर रोज़ तीन बसें बदलकर पहुँचता था। यह ग़ौरतलब है कि कभी भी उसे बस में सीट नहीं मिली थी। वह ग्यारह सालों से खड़ा हुआ था ख़ुद को कभी पर्वत कभी पेड़ कभी लैंप पोस्ट समझता हुआ। वह उस बनावट से बहुत दूर था आग्रह को जो आवश्यक समझती है। वह ग्यारह सालों से रोज़ तीन बसें बदलकर खड़े-खड़े नगर के बीचोबीच स्थित उस लाइब्रेरी में जहाँ साढ़े चार लाख से ऊपर किताबें हैं केवल यह जानने के लिए रहा है कि उसका कविता-संग्रह अब तक किसी ने इश्यू कराया या नहीं। लाइब्रेरियन कहता है कि वह मर गया लेकिन वह अब भी रहा है पूर्ववत्...

    स्रोत :
    • रचनाकार : अविनाश मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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