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कविता और रोना

kavita aur rona

कपिल भारद्वाज

अन्य

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कपिल भारद्वाज

कविता और रोना

कपिल भारद्वाज

और अधिककपिल भारद्वाज

    गर्मी के दिनों में गया रेगिस्तान

    तपती रेत के साथ फूट-फूट कर रोया।

    सर्दियों में पहाड़ों की बिन बुलाई यात्रा की

    धुँध को लिपटाकर रोया

    अपनी देह से।

    बसंत में नदियों में उतरकर रोया

    गुनगुनी धूप में बैठकर रोया

    और रोया फूलों की क्यारी के बीच में बैठकर

    और रोया पंछियों के साथ गाते-गाते

    बबूल के काँटों के साथ रोया

    अर्जुन की छाल के साथ रोया।

    इतिहास की किताबों में सिर रखकर रोया

    वर्तमान के आँचल में बैठकर भी रोया

    और रोया भविष्य के सपने देखकर।

    प्रेमचंद, कबीर, मीर के साथ रोया

    गाँधी, अंबेडकर, भगत सिंह के साथ रोया

    मेसोपोटामिया जाकर रोया, हड़प्पा में आकर रोया।

    कविता लिखते लिखते रोया।

    रोते-रोते कविता लिखी और फिर सो गया।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कपिल भारद्वाज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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