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कटहल

kathal

प्राची

अन्य

अन्य

प्राची

कटहल

प्राची

 

एक

कटहल के जंगलों की तरफ़ भागते हुए
वर्षा की कामना करना
मृत्यु की कामना करना है
स्वचयनित मृत्यु
तुम्हारी तरफ़ भागते हुए पीछे देखने जैसा
कि पलक झपकाई और तुम ओझल
इसी भागने-भगाने के खेल से मुक्ति हेतु
माँ ने आँगन से सारे कटहल उखाड़ दिए
कहती है बिजली गिरती है
तुम्हें भी ऐसे बहाने देना
मैंने माँ से ही सीखा है

कटहल के जंगलों की तरफ़
भागते हुए सोचती हूँ
तुम ऐसे ही आ गिरो मुझ पर—
गाज की तरह
चमकते हुए
थरथर काँपते एक झटके में तुम्हारा नृत्य
दूसरे में देह तुम्हारी।

दो

कटहल में फूल नहीं लगते
बस कटहल लगते हैं—
भारी-भरकम

मेरे कंधों की जगह कटहल की टहनियाँ हैं
एक तुम तोड़ लो
बाक़ी किसी और को दे देना

लेकिन अब मैं थक चुकी हूँ
इन जंगलों में भागते
कुछ दिखाई नहीं पड़ता

तो आ जाओ ना
बरखा-बिजली-गाज-सावन
मेरा शब्दकोश बहरा हो चला है
आ जाओ न…
कि आँखें अब देखने से मना करती हैं
साँय से चमककर
भाग जाओ
आसमान में मिल जाओ
जैसे कभी आए नहीं
बस एक क्षण के लिए
अपनी उपस्थिति दे जाओ
क्योंकि तुम ईश्वर नहीं!

स्रोत :
  • रचनाकार : प्राची
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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