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काशीपुर

kashipur

गुंजन उपाध्याय पाठक

अन्य

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और अधिकगुंजन उपाध्याय पाठक

    काशीपुर की गलियों में है छलावा

    विकृत और ओछा संगीत

    यह भ्रमित करती है

    और लिपट जाती है वजूद से

    जोंक की तरह

    दम भर ख़ून चूसकर छोड़ दिया करती है

    यह जानते हुए भी

    एक बार इस गली से निकलते हुए

    गिर पड़ी साइकिल

    और वह व्याकुल जीव टूट पड़ा

    रेलवे की पटरियों पर खड़ी ट्रेन के नीचे से

    झाँकते हैं युगल

    और तरसते हैं इक ख़्वाब को

    भागकर लड़कियाँ कहीं नहीं पहुँचती

    फिर से लौट आती हैं इसी शहर में

    करती हैं नौकरियाँ

    वहाँ औरतों की छातियों पर

    हाथ फेरते हुए

    मूँछों पर ताव का रिवाज़ है

    पिटती है अपनी महबूब के साए से

    उलझती हैं गिरती पड़ती हैं और फिर

    उस मुहब्बत में कॉम्प्लिकेटेड का तस्मा बाँधे

    अगले दिन फिर जोहती है बाट

    महबूब के बदल जाने की

    समस्तीपुर की गलियों में मिलती है

    सस्ती बुद्धिजीविता और कुछ और

    सस्ता रोमांटिसिज्म

    (अमिताभ बच्चन को पढ़ते हुए)

    स्रोत :
    • रचनाकार : गुंजन उपाध्याय पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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