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कपड़ों को पछाड़ने वाला मानव

kapDon ko pachhaDne wala manaw

शेषेन्द्र शर्मा

अन्य

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शेषेन्द्र शर्मा

कपड़ों को पछाड़ने वाला मानव

शेषेन्द्र शर्मा

और अधिकशेषेन्द्र शर्मा

    कपड़ों को पछाड़ने वाला मानव

    पछाड़ रहा है मानवीय सपनों को भी

    सपने घुल जाएँगे जलों में

    और घाट आमंत्रित करेंगे गाँवों को

    उड़ गया चक्रवात एक विशाल चील की तरह

    और बादशाह लगने लगा ग्रीष्म का

    आधी रात में आकाश ने झाड़ा जिन नक्षत्रों को

    उन्हें लपेटा काग़ज़ में और थमा दिया हाथ में!

    सूरज—कई इतिवृत्तों से निर्मित एक वृत्त है

    और इंसान एक ऐसा संक्रांति वृक्ष

    फँसी पड़ी हैं जिसमें कई रंगीन पतंगें!

    सुख-तीर से बच कर भागता हुआ हिरन है

    और संसार—एक स्वप्न

    जिसे निर्मित करता है आदमी।

    पक्षी का गाना, पुस्तकों का खज़ाना

    वृक्ष संसार को देखने वाला एन्टेना

    हरियाली पर खेलता हुआ वह बालक

    समन्दर में मचलता हुआ तूफ़ान।

    मेरा विश्वास है कि

    उन घावों को जिन्हें बनाया है कई

    चाँदनी रातों ने

    ठीक कर सकता है एक चंद्रमा

    इसीलिए मुझे डर है

    कि कहीं आकाश से उड़ जाए यह चंद्रमा

    इन बढ़ती हुई आँधियों में।

    सायंकाल के समय

    थोड़ा-सा गीत

    थोड़ा-सा अँधेरा

    थोड़ा-सा मधु

    और चाहिए थोड़ी-सी प्रतीक्षा

    जब होता ज्ञात

    जल का अधःपतन नहीं है

    जलप्रपात

    और आँसू नहीं है दुःख का संकेत।

    —‘चीखता हुआ आदमी’ से

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द इस शताब्दी का (पृष्ठ 41)
    • रचनाकार : कवि के साथ भीम सेन 'निर्मल', ओम प्रकाश निर्मल
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1991

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