कहो ख़ज़ाँची

kaho khazanchi

योगेश कुमार ध्यानी

योगेश कुमार ध्यानी

कहो ख़ज़ाँची

योगेश कुमार ध्यानी

कहो ख़ज़ाँची खातों मे हुआ कितने का लेन-देन

कितने आए नोट कितने गए

सब ठीक-ठाक तो रहा,

दूसरों के नोटो के बीच तुम पी सके

तीन बजे की अपनी चाय?

कितने नहीं चुका सके लोन की किश्त,

जिनकी पेंशन नहीं पहुँची

उनके घर हो सका क्या रोटी का बंदोबस्त

ख़ैर जाने दो, यह कहो

तीन बजे की चाय मे ठीक थी शक्कर

कितनों ने निकाला बचाई हुई रक़म से हिस्सा

कितने सेठों ने जमा करवाई रोज़ से ज़्यादा गड्डियाँ

क्या कहना है तुम्हारा

ठीक से तो चल रही है देश की अर्थव्यवस्था

कैसे लगते हैं तुम्हे क़तार मे खड़े हुए लोग

क़तार जब बिखरती है और तुम शीशे के पीछे से चिल्लाते हो “लाइन मे रहो”

तो कैसा लगता है

लाइन के भी बिखरने पर थोड़ा चिल्ला लेने मे कुछ ग़लत नहीं है ख़ज़ाँची

जीने के लिए थोड़ा गर्व चुराने मे कैसा हर्ज

तुम्हारे हाथ की उँगलियों ने आज तक गिने हैं कितने नोट

तुम कुछ अंदाज़ बता सकते हो

यह जो तुम्हारी उँगलियों की पोरों से मिट गए हैं वलय के चिह्न

कितने नोटों पर छपे होंगे कह सकते हो

कितनी तिजोरियों मे होंगे तुम्हारे अँगूठे के निशान

सबका तबादला हुआ तुम जमे रहे

तुम जिस कुर्सी पर बैठते हो उसकी गद्दी दब गई है

तुम्हारे पृष्ठ भाग के आकार मे

तुम्हारे अगल-बगल के लोग बदलते रहे

कुछ तबादले, कुछ तरक़्क़ी के लिए

तुम्हारे सामने भी तो आए होंगे कितने धन्नासेठ, सुनार और ज़मींदार

तुमने कैसे बचाया अपना संतोष, अपना ईमान

तुम्हे देख कभी पूछा किसी ने

रक़म से इतर कोई दूसरा सवाल

इतने जमा, इतने की निकासी

क्या कभी लिया मैनेजर ने घर का हाल

कभी देखा तुमने जब तुम गिन रहे थे उनके नोट

तो पंजों पर उचके लोगों ने अपनी आँख भी नहीं झपकी

विश्वास और अविश्वास की दहलीज़ था तुम्हारे काउँटर का शीशा

अच्छा यह कहो

ज़मीन के बड़े-बड़े सौदों के बीच तुम्हे कितनी बार दिखा

अपने मकान का झड़ता हुआ पलस्तर

ख़ैर जाने दो

यह जो तुम्हारे काउंटर की जगह पर लग गई है मशीन

इससे कितनी ईर्ष्या करते हो तुम

कहो ख़ज़ाँची

दिन बीत गया, क्या पाया

क्या छूट गया, क्या हाथ आया!

स्रोत :
  • रचनाकार : योगेश कुमार ध्यानी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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