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काश! वह बेटा होती

kaash! wo beta hoti

चंद्रेश्वर

चंद्रेश्वर

काश! वह बेटा होती

चंद्रेश्वर

एमए पास उस औरत की फ़ाइल में

कुछ भी नहीं रखा है

तरतीब से

जैसे उसकी याददाश्त

मूल प्रमाणपत्रों की जर्जर हालत

इस उम्र में भी वह कर रही है भाग दौड़

नौकरी के लिए

मर्द घर में डराता-धमकाता है

बाहर दुनिया का कर रखा है पैदा

आतंक

मानो बाहर दफ़्तरों में लोग नहीं

काम करते हों

बाघ, भालू, शेर या रीछ

इकट्ठे हों चौक-चौराहों पर

गिद्धों के झुँड

अथाह ऊर्जा से भरी औरत चाहती है

मुक्ति सिर्फ़

रोटी-बेलन

चुल्हा-चौकी की सीमित दुनिया से

घर की चहारदीवारी से बाहर निकलकर

नथुनों और फेफड़ों में भरना चाहती है

भरपूर ऑक्सीजन

वह ससुराल में आने के बाद भी मरती है

मायके के लिए

बनना चाहती है

माँ-बाप के बुढ़ापे की लाठी

काश! वह बेटा होती

उसका पति पूरे मन से नहीं करता सहयोग

उसकी फ़ाइल को कर देना चाहता है

गुम

जिसमें बसती है

उसकी जान!

स्रोत :
  • रचनाकार : चंद्रेश्वर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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