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जोबन और बुढ़ापा

joban aur buDhapa

अनुवाद : रतनलाल शांत

अब्दुल अहद 'आज़ाद'

अन्य

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अब्दुल अहद 'आज़ाद'

जोबन और बुढ़ापा

अब्दुल अहद 'आज़ाद'

और अधिकअब्दुल अहद 'आज़ाद'

    जोबन है उपवन में खिल आया गुलाब

    और बुढ़ापा है मज़ार पर उगा फूल सोसन का

    जोबन काँटों पर भी फूलों-सा रीझे

    और बुढ़ापा फूलों या काँटों से एक समान सीझे

    जोबन घाम है सावन की, हार प्रफुल्लित और बयार वासंती

    और बुढ़ापा ठंड माघ की, ‘पांचाल’ पहाड़ों पर खाइयों में

    गहरे जमे हुए हिमकण।

    जोबन उछाह, लय प्रकट करे, विकल जोश संगीत भरा

    और बुढ़ापा हाय हाय पीड़ा की, टूटे तारों का टूटा स्वर

    प्यार की आग जवानी है, संगीत दर्द का, आकांक्षा का जोश

    बुझी आग की, अंगारों की, बड़े प्रयासों की है राख बुढ़ापा

    जोबन का मतवाला दुनिया में बेफ़िक्र घूमे

    बुज़दिल कमज़ोर बुढ़ापे पर बलशाली बल आज़माए

    यौवन है फूलों का दीवाना मनुष्य, नए उपवनों पर रीझे

    उजड़ी हुई बहारों का अवशेष बुढ़ापा, दाग़ एक अवसाद का

    जोबन बाग़ ज़िन्दगी का है, भोगें आशिक़, मनमौजी

    और बुढ़ापा दूर बस्तियों से वीराना, गुफा दर्द की निर्जन

    जोबन ताज़ा ख़ून शिराओं में जीवन का, दौड़ फिर रहा

    और बुढ़ापा बदकिस्मत लोगों को भीतर से जर्जर करता है।

    भँवर समंदर का, यौवन, मँडराए अपने इर्द-गिर्द

    और बुढ़ापा धूल का रेला, सूखे नद के तल का

    जोबन है जीवंत उमंगें, असफलता हसरतें बुढ़ापा

    दास बेबसी का है बुढ़ापा, जोबन स्वामी अधिकारों का

    इसीलिए 'आज़ाद' नेह के दीवाने सब लोग यहाँ

    जोबन आज मजूरों का, है बुढ़ापा पूँजीपतियों का।

    (मूल शीर्षक : यावुन त् बुजर)

    1.सोसन : पीले फूल जो मज़ारों के आसपास की ज़मीन में खिलते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 41)
    • संपादक : रतनलाल शांत
    • रचनाकार : अब्दुल अहद 'आज़ाद'
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2005

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