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जगने पर

jagne par

अनुवाद : रति सक्सेना

बालमणि अम्मा

अन्य

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बालमणि अम्मा

जगने पर

बालमणि अम्मा

और अधिकबालमणि अम्मा

    दौड़कर मेरी प्रज्ञा का आलिंगन करने वाली निद्रा

    स्वाभाविक थकावट को धोने वाली पवित्रता

    तकलीफ़ होने पर जैसे बच्चा माँ के कंधे पर सोता है

    वैसे ही शरीर को मोड़े-माड़े बिना मैं तुझमें सोई।

    तेरे ठंडे प्रवाह में पूरी तरह भीग कर

    ओस के मुलायम गद्दे पर जब आँख खुलती है

    आधि-व्याधि, क्लेश-कर्तव्य बोध

    सब कुछ भूल-भाल जब तुझमें सोती हूँ तो

    मुझे लगता है कि चाँद का दीप हाथ में धरे

    यह धरती मुझे निहारती खड़ी है, ओह कितना आनंद!

    तेज़ी से घूमता तेरा स्फटिक भवन

    अपने अंदर ही खोजता है मुझे बार-बार

    अतुलनीय रंग हैं इस धरती के जहाँ

    मैंने पाँव टिकाए और शरीर सीधा किया।

    लंबी नींद का आलिंगन कर जब मेरी अश्रांत आत्मा

    इस नीरव अगाधता में सोई हुई थी तो

    पंखों को फड़फड़ाती, मन्दिम हवा में

    चंचल पंखुड़ियों वाली इला देवी ने

    हल्की छायाओं से बुनी अगाध गहराई में

    मुझे पकड़कर खींच लिया,

    अहो, इस नींद ने तो युग को निगल लिया,

    उठी तो देखा यह धरती सूरज के दीपक को

    हाथ में थामे मुझे निहारती सामने खड़ी है

    यह सोचकर मैं गाने लगी, ओह कितना आनंद!

    स्रोत :
    • पुस्तक : नैवेद्य (निवेद्यम्) (पृष्ठ 125)
    • रचनाकार : बालमणि अम्मा
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1996

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