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जड़ें

jaDen

राजेंद्र धोड़पकर

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और अधिकराजेंद्र धोड़पकर

    हवा में बिल्कुल हवा में उगा पेड़

    बिल्कुल हवा में ज़मीन में नहीं

    बादलों पर झरते हैं उसके पत्ते

    लेकिन जड़ों को चाहिए एक आधार और वे

    किसी दोपहर सड़क पर चलते एक आदमी के

    शरीर में उतर जाती हैं

    उसके साथ उसके घर जाती हैं जड़ें

    और फैलती हैं दीवारों में भी

    आदमी झरता जाता है दीवारों के पलस्तर-सा

    जब भी बारिश होती है

    उसके स्वप्नों में पत्ते झरते हैं बादलों से

    जब दोपहर में आदमी चला जाता है शहर में खपने

    तब एक फल गिरता है आँगन में

    सुनसान धूप में

    और उसके सोते हुए बच्चे की आवाज़ खाने दौड़ती है उसे

    स्रोत :
    • पुस्तक : दो बारिशों के बीच (पृष्ठ 10)
    • रचनाकार : राजेंद्र धोड़पकर
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1996

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