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इतनी क्षति मैंने दो बार के सिवा कभी नहीं सही

itni kshati mainne do baar ke siva kabhi nahin sahi

अनुवाद : चंद्रबली सिंह

एमिली डिकिन्सन

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एमिली डिकिन्सन

इतनी क्षति मैंने दो बार के सिवा कभी नहीं सही

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    इतनी क्षति मैंने दो बार के सिवा कभी नहीं सही
    और वह मिट्टी के नीचे घटित हुई।
    दो बार मैं याचक की तरह
    प्रभु के द्वार खड़ी हुई।

    देवदूतों ने दो बार उतर कर
    पुनः भरा मेरा भण्डार—
    चोर! साहूकार—पिता!
    मैं हूँ रंक पुनः एक बार!

         
    स्रोत :
    • पुस्तक : एमिली डिकिन्सन की कविताएँ : संचयन (पृष्ठ 33)
    • रचनाकार : एमिली डिकिन्सन
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 2011

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