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स्त्री : कुछ क्षणिकाएँ

istri ha kuch kshanikayen

मनमीत सोनी

अन्य

अन्य

मनमीत सोनी

स्त्री : कुछ क्षणिकाएँ

मनमीत सोनी

 

एक

सारी पीढ़ियाँ
इस भरम में
शिकारी हो गईं
कि स्त्री की देह
बहुत स्वादिष्ट होती है।

दो

स्त्री में
उतरो तुम

सिर्फ़ धँसो मत!

तीन

नोचने वाले कम हैं
और सहलाने वाले ज़्यादा...

फिर भी ज़ख़्मी है वह।

चार

अजीब बात है
औरत की देह का
एक भी हिस्सा ऐसा नहीं
जिसे चूमा न गया हो
जिसे नोचा न गया हो।

पाँच

कोई लड़की
काली नहीं होती
वह बस ज़्यादा साँवली होती है

कोई लड़की
ज़्यादा साँवली नहीं होती
वह बस कुछ कम गोरी होती है

कोई लड़की
कुछ कम गोरी नहीं होती
बस उसका रंग मर्द के स्वाद से नहीं मिलता।

छह

हँस मत मूर्ख!

उस औरत ने
अपने ब्लाउज़ से नहीं
अपने दिल से एक नोट निकालकर
उस फ़कीर की हथेली पर रखा है।

सात

औरतें
औरतों पर अच्छा लिख सकती हैं
क्योंकि उन्होंने भुगता है दर्द...

मर्द
औरतों पर
औरतों से बेहतर लिख सकते हैं
क्योंकि उन्होंने रची है साज़िश।

स्रोत :
  • रचनाकार : मनमीत सोनी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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