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ईश्वर की सबसे कुरूप रचना

ishwar ki sabse kurup rachna

आसित आदित्य

अन्य

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आसित आदित्य

ईश्वर की सबसे कुरूप रचना

आसित आदित्य

और अधिकआसित आदित्य

    नंगी पीठ पर फिसलते पसीने की मानिंद

    अंतरिक्ष में फिसलता टूटा तारा होना था मुझे।

    मुझे होना था

    अपने प्रिय लेखक की सबसे ख़ूबसूरत पंक्ति

    या चाँदनी रात, सड़क पर लड़खड़ाते हुए गाता

    एक पियक्कड़ का स्खलित सुर।

    परंतु मेरे निर्माण के अरसे पहले

    ईश्वर ने कर दिया था मेरी बदनसीबी का निर्माण।

    हाड़ और मांस में मुझे ढाले जाने की जब बारी आई

    तबतक बूझ चुकी थी उस भट्टी की आग

    जिसमें ईश्वर ढालता था टिमटिमाते सितारे,

    तब तक हमबिस्तर हो चुका था मेरा प्रिय लेखक

    अपने ताबूत में लहू उगलते अपने टूटे क़लम के साथ,

    तब तक सिवान के महुए से झूल चुका था वो पियक्कड़।

    इस दुनिया की ख़ूबसूरती से हर रोज दो-चार होता हूँ मैं

    और हर रोज़ दंड-स्वरूप मिलता है मुझे

    ईश्वर की सबसे कुरूप रचना होने का भयावह एहसास।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आसित आदित्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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