ईश्वर होती देह

ishwar hoti deh

रश्मि भारद्वाज

रश्मि भारद्वाज

ईश्वर होती देह

रश्मि भारद्वाज

वहाँ किसी को जीतना नहीं है

हार दोनों की तय है

प्रेम के उत्कट क्षण

ख़ुद को ख़ाली करता हुआ एक उन्मत्त, अधीर

उसे ख़ुद में समेट लेने को व्याकुल प्रणयी बाँहें

वक्ष, उदर, ग्रीवा, पृष्ठ, भुजाएँ

आँखें, चिबुक, कर्ण

हर अंग पर होंठों से एक दूसरे का नाम लिखना

दरअस्ल, आत्मा पर एक स्थायी नाम लिख देने की तड़प होती है

तीव्र साँसों की आरोहित लय के साथ साथ काँपते दो शरीर

बंद आँखें

एक दूसरे में समाहित होना

जैसे अथाह जल में धीरे-धीरे ग़ोते लेता अपनी ही तपिश से थका हुआ सूरज

थोड़ी देर बुझ जाना चाहता हो

जैसे अपनी ही परिधि से बाँध दी गई एक अनंत जलराशि

आज तोड़ देना चाहती हो सारी सीमाएँ

दो ईश्वर एक दूसरे में लीन सृजन-लीला रच रहे

सृष्टि असीम आनंद से भरी उन्हें निहार रही है

समर्पित हो जाना देह और प्राण का

ये साधना के फलीभूत होने के क्षण हैं

हर अहम्, हर अहंकार की समिधा को प्रेम की अग्नि में समर्पित कर

यह आत्मा के एकाकार होने का यज्ञ है

एक दूसरे में अवगुंठित दो शरीर

तब स्त्री हैं

पुरुष

वे एक दूसरे को खोजती विकल आत्माएँ

दरअस्ल, अपना ही एक विस्मृत हिस्सा तलाश रही हैं

हर आवरण को हटाकर

मन छू आना चाहती हैं

प्रेम लिख आना चाहती हैं

उनके मिलन का साक्षी है एक निष्कपट अँधेरा

जिसमें घुलकर वे भूल जाते हैं

कि दिन का साज़िशी उजाला उन्हें किस हद तक

दो हिस्सों में बाँट जाता है

अपने हर मद, हर विजय, हर पराजय को सौंप कर

वह बेसुध सोया शिशु

जो बस अभी-अभी ही जागा है

कल नींद टूटते ही फिर कई युगों की नींद सो जाएगा

उसे याद आएगी एक विजित की गई स्त्री

उसका पौरुष उन्मादित, अहंकार भरा अट्टहास करेगा

एक पृथ्वी उसके स्खलन की साक्षी, उसे समेटे हुए अपनी बाँहों में

धीरे-धीरे चूमती है, उसके बालों पर उँगलियाँ फैलाती

हौले से मुस्कुराती है

एक लंबी मृत्यु जी आने के बाद

बस इन कुछ पलों में ही एक युग जी आई है

अलस्सवेरे ही फिर स्त्री हो आएगी

अपने प्रश्नों में घिरी, देह की परिधि में बंद

वह सदियों के लिए फिर से मृत हो जाएगी

स्रोत :
  • रचनाकार : रश्मि भारद्वाज
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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