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इस वक़्त कहने को कुछ नहीं

is vaqt kahne ko kuch nahin

शुन्तारो तानीकावा

अन्य

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शुन्तारो तानीकावा

इस वक़्त कहने को कुछ नहीं

शुन्तारो तानीकावा

और अधिकशुन्तारो तानीकावा

    इस वक़्त कहने को कुछ नहीं है मेरे पास

    मैं सिर्फ़ धूप सोखता यहाँ बैठा हूँ

    मेरी बीवी ख़ूबसूरत है

    और मेरे बच्चे प्यारे

    क्या मैं सच बोल दूँ?

    मैं कवि नहीं हूँ

    होने का स्वाँग करता हूँ

    मुझे बनाया गया और अब यहाँ हूँ मैं फेंक दिया गया

    देखो : समुद्र पड़ गया है स्याह

    लेकिन तब भी धूप चट्टानों पर थपेड़े खा रही है

    सचमुच कहने को तुमसे कुछ नहीं है मेरे पास

    सिवाए इसके कि यह दिन डूबा है धूप और विश्राम में

    तब भी नहीं जब दौड़ रहा हो रक्त तुम्हारे नगर की गलियों में

    मैं हमेशा चमत्कृत रहूँगा इस धूप से

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 311)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : शुन्तारो तानीकावा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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