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इस मोड़ पर आकर

is moD par aakar

अनुवाद : खड़कराज गिरी

वीरभद्र कार्कीढोली

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वीरभद्र कार्कीढोली

इस मोड़ पर आकर

वीरभद्र कार्कीढोली

और अधिकवीरभद्र कार्कीढोली

    पत्तों के गिरने के लिए

    ज़ोरों की हवा ज़रूरी नहीं

    गिरने वाले पत्ते

    मंद हवा के सरकने से भी गिरते हैं।

    वर्षा के आने पर भी

    आएगी ही वह ऋतु स्वतः

    आएगी निश्चित हरियाली लेकर।

    कई ऊँचाई चढ़कर

    इस मोड़ पर खड़ा है

    देखो, वह आदमी!

    अब राह मोड़कर

    यात्रावसान नहीं होगा उसका।

    यातना, विपन्नता के दौर में

    तुम भी चलकर कहीं पहुँचो

    ऐसी धारणा है ही नहीं उसकी

    पत्ते गिरकर ज़मीन पर ही मिलते हैं

    चाहते नहीं वे

    सँटना आकाश से

    हँसने वाले भी रो रहे होते है—

    भीतर ही भीतर...

    हर फूल में काँटे नहीं होते

    पर गुलाब

    तहेदिल से चाहता हूँ

    जो चुभते हैं

    मेरी हथेलियों में।

    पत्तों के गिरने से ही

    मरा नहीं है वह पेड़

    घबराहट में संयम/धैर्य खोना,

    पत्तों के झड़ने से ही

    फूल खिलेंगे नहीं, ऐसा नहीं है।

    फूल भी गिरते हैं

    जैसे पत्ते

    फूल पत्तों की तरह नहीं गिरते

    पत्ते गिरते है

    पत्ते तूफ़ान के आने पर ही गिरते हैं,

    ऐसा नहीं है।

    देखो, वह आदमी

    राह मोड़कर

    इस मोड़ पर आकर खड़ा है

    निश्चिंत खड़ा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस शहर में तुम्हें याद कर (पृष्ठ 41)
    • रचनाकार : वीरभद्र कार्कीढोली
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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