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रात की ठंडी गलियों में

raat ki thanDi galiyon mein

अनुवाद : उपासना झा

फरूग़ फरूख़ज़ाद

अन्य

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फरूग़ फरूख़ज़ाद

रात की ठंडी गलियों में

फरूग़ फरूख़ज़ाद

और अधिकफरूग़ फरूख़ज़ाद

    मैं नहीं पछताती

    इस इस्तीफ़े

    इस तकलीफ़देह समर्पण के बारे में सोचकर

    मैंने अपनी ज़िंदगी की सलीब चूम ली है

    अपनी मौत की पहाड़ियों पर।

    रात की ठंडी गलियों में

    जोड़े हमेशा अलग होते हैं हिचकते हुए।

    रात की ठंडी गलियों में

    कोई शोर नहीं है, बस आवाज़ है

    अलविदा, अलविदा की

    मैं नहीं पछताती

    ये ऐसा है

    जैसे मेरा हृदय बह रहा हो

    समय के दूसरी तरफ़।

    ज़िंदगी मेरे दिल की प्रतिध्वनि बनेगी

    और डांडेलियन फूलों के बीज

    समय के ताल पर तैरते हुए

    मुझे फिर से

    उगा लेंगे।

    क्या तुमने देखा कि

    किस तरह मेरी चमड़ी फट रही है?

    कैसे मेरी छाती की नीली शिराओं में

    दूध बनता है?

    किस तरह मेरे निष्क्रिय यौनांगों में

    ख़ून दौड़ता है?

    मैं तुम हूँ, तुम

    और वह जो प्यार करती है

    वह जो अचानक स्वयं में पाती है

    हज़ारों नए बेवक़ूफ़ाना विचार।

    मैं पृथ्वी की उत्कट प्यास हूँ

    स्वयं में सारा पानी सोखती हुई

    खेतों को पानी से सींचने को।

    सुनो मेरी दूर से आती हुई आवाज़ को

    घने कुहरे में डूबी हुई भोर की प्रार्थनाएँ

    और ख़ामोशी के आइने में देखो

    किस तरह मैं अपने बचे-खुचे हाथों से

    छूती हूँ, एक बार फिर,

    सपनों के गहरे अंधकार

    और जीवन की मासूम सुंदरता पर

    अपने दिल की छाप ऐसे छोड़ती हूँ

    जैसे ख़ून का दाग़

    मैं नहीं पछताती

    प्यारे, मुझसे बात करो

    मेरे ही एक और रूप से

    उन्हीं प्यार में डूबी आँखों से देखो

    जिन्हें तुम रात की ठंडी गलियों में

    फिर से पा सकोगे

    अपनी आँखों के नीचे बनी लकीरों पर

    उसके उदास चुंबन में मुझे याद करना।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : फरूग़ फरूख़ज़ाद

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