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प्रेम और पैसा

prem aur paisa

राजदीप सिंह इंदा

अन्य

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राजदीप सिंह इंदा

प्रेम और पैसा

राजदीप सिंह इंदा

और अधिकराजदीप सिंह इंदा

    प्रेम बड़ा या पैसा...?

    वर्णों पे मत जाना,

    है तो दोनों 'प' से।

    क्यों तुलता है प्रेम पैसों से...?

    क्यों नहीं करते लोग नीरा प्रेम...?

    रटकर...

    बघारी जाती है शेखी

    सरकारी पैसों का अंह लिए

    मत दिखाओ पैसों के ख़ंजर प्रेम को

    मत खड़ी करो पैसों की दीवारें प्रेम के आगे।

    प्रेम झुकता है, ठोकरें खाता है

    कुचला जाता है सरकारी पैसों से

    जान हाज़िर करनी पड़ती है

    तब जाकर लिखी जाती है

    सफ़ेद पन्नों पर कोई कहानी...

    हीर का राँझा, मीरा दीवानी।

    हे मानव!

    पहचानो तुम प्रेम को

    मिलने दो तुम ख़ुशियों को

    आने दो हवाएँ उधर से

    ले जाने दो ख़ुशबुएँ इधर से

    क्योंकि…पैसा नहीं, प्रेम ही है अपना अस्तित्व।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजदीप सिंह इंदा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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